SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 365
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या-कोश २०३ काइयम्स लद्धी × × × देवेसु न चेव उववज्जंति ) उनके सम्बन्ध में लेश्या की अपेक्षा से पृथ्वीकायिक उद्देशक ( ५८ १०१-१२ ) में जैसा कहा वैसा ही कहना । -भग० श २४ । उ १७ । सू १ । पृ० ८३७ ५८. १६ त्रीन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में— '५८*१६*१*१२ स्व-पर योनि से त्रीन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में गमक- १-६ स्व-पर योनि से त्रीन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( तेइ दिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति ? एवं तेइ दियाणं जहेव बेइ दियाणं उद्देसो) उनके सम्बन्ध में लेश्या की अपेक्षा से द्वीन्द्रिय उद्देशक ( *५८*१५*११२ ) में जैसा कहा वैसा ही कहना | - भग० श २४ । उ १८ । सू १ । पृ० ८३७ - ५८ १७ चतुरिन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में*५८*१७*१·१२ स्व-पर योनि से चतुरिन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में— गमक- - १ - ६ स्व- पर योनि से चतुरिन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( चउरिंदिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति ? जहातेइ दियाणं उद्देसओ तहेव चउरिंदियाणं वि ) उनके सम्बन्ध में लेश्या की अपेक्षा से त्रीन्द्रिय उद्देशक ( ५८ १६ ११२ ) में जैसा कहा वैसा ही कहना | -भग० श २४ | उ १६ | सू १ । पृ० ८३८ -५८१८ पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में *५८·१८·१ रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी से पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में--- गमक - १-६ रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी से पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( रयणप्पभापुढविनेरइए णं भंते! जे भविए पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु उववजित्तए x x x तेसि णं भंते ! जीवाणं xxx एगा काऊलेस्सा पन्नत्ता प्र ३, ५ । ग०१ । सो चेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy