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३ क्रिया ( कायिकी, आधिकारणिकी व प्राद्वेषिकी )
४ क्रिया ( ३ + पारितानिकी एवं ४ )
५ क्रिया ( ४ + १ प्राणातिपातिकी )
आगम साहित्य में तेजोलब्धि के स्थान पर तेजोलेश्या का भी प्रयोग हुआ है । अध्ययन से मालूम होता है कि तेजोलेश्या तेजोलब्धि पर्यायवाची शब्द है । स्थानांग सूत्र में दस कारणों से श्रमण-माहण की अत्याशावना करने वाले, को तेज से ( तेजो लेश्या से ) भस्म कर सकता है । कभी-कभी तेजोलेश्या से फेंकने वाला भी भस्म हो जाता है । कोई व्यक्ति तथा रूप - तेजोलब्धि ( तेजोलेश्या ) सम्पन्न श्रमण-माण की अत्याशातना करता हुआ उस पर तेज फेंकता है । वह तेज ( तेजोलेश्या ) उसमें घुस नहीं सकती उसके ऊपर-नीचे, नीचे-ऊपर आता जाता है, बांए दांए प्रदक्षिणा करता है । वैसा कर आकाश में चला जाता है, वहाँ से लौटकर उस श्रमण - माह के प्रबल तेज से प्रतिहृत होकर वापस उसी के पास चला जाता है । जो उसे फेंकता है उसके शरीर में प्रवेश कर उसको तेजोलब्धि ( तेजोलेश्या ) के साथ भस्म कर देता है । जिस प्रकार मंखलीपुत्र गोशालक ने भगवान महावीर पर तेज का प्रयोग किया था ( वीतरागता के प्रभाव से भगवान भस्मसात नहीं हुए । वह तेज लौटा और उसने गोशालक को ही जला डाला ॥ १ अर्थात् श्रमण- माहण की आत्याशातना करता हुआ उस पर तेज ( तेजो लेश्या ) फेंकता है | तेज उससे प्रविष्ट नहीं होता । प्रदक्षिणाकर पुनः फेंकने वाले के पास चला जाता है । उस तेज के फेंकने वाला की भस्म होता है ।
स्थानांग सूत्र में दस ऐसे प्रकार बताये गये हैं, जिनके द्वारा तेजो लेश्या का प्रयोग किया जाता है | २
१ - श्रमण माहण की अत्याशातना करने वाले पर श्रमण कुपित हो तेज फेंक उसे परितप्त करते हुए भस्म करता है ।
२- कोई व्यक्ति तेजोलब्धि ( तेजो लेश्या ) सम्पन्न श्रमण माहण की अत्याशातना करता है । उसके अत्याशातना करने पर कोई देव कुपित हो कर तेज फेंक परितप्त करते हुए उसे भस्म करता है ।
१. भगवती श १५ । सु १११ ११४
२. ठाण० स्था १० | सूत्र १५६
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