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लेश्या-कोश
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भविक ज्योतिषी देव तेजोलेश्या, भविक वैमानिक देव तेजो, पद्म या शुक्ललेश्या के द्रव्यों का ग्रहण करके जिस लेश्या में काल करता है उसी लेश्या में उत्पन्न होता है । या दण्डक में जिस जीव के जो लेश्यायें कही गई है उसी प्रकार कहना ।
(ग) जो जाए परिणभित्ता लेस्साए संजुदो कुणइ कालं । तल्लेस्सो उववज्जइ तल्लेस्से चेव सो सग्गो || १६२२||
- मूला० आ ७ । गा १६२२ | पृ० १७०८
विजयोदया - जो जाए यो यया लेश्यया परिणतः कालं करोति, स तल्लेश्य एवोपजायते, तल्लेश्यासमन्विते स्वर्गे ।
जो जीव जिस लेश्या में से परिणत होकर मरण को प्राप्त होता है, वह उसी लक्ष्या में उत्पन्न होता है और उस लेश्या से समन्वित स्वर्ग में जाकर उत्पन्न होता है ।
यहाँ यह स्पष्ट नहीं है कि यह द्रव्यलेश्या का वर्णन है या भावलेश्या का ।
२८२ द्रव्यलेश्या का परिणमन और जीव के उत्पत्ति-मरण के नियम
साहिं सव्वाहिं, पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न हुस्सई उववाओ, परे भवे अत्थि जीवस्स ॥ साहिं सव्वाहिं, चरिमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न हु कम्सइ उववाओ, परे भवे अस्थि जीवरस || अंतमुहुत्तम्मि गए, अंतमुहुत्तम्मि सेसए चेव । साहिं परिणयाहिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं ॥
— उत्त० अ ३४ । गा ५८, ५६, ६० । पृ० १०४८
सभी लेश्याओं की प्रथम समय की परिणति में किसी भी जीव की परभव में उत्पत्ति नहीं होती है तथा सभी लेश्याओं की अन्तिम समय की परिणति में भी किसी जीव की परभव में उत्पत्ति नहीं होती है । लेश्या की परिणति के बाद अन्तर्मुहूर्त बीतने पर और अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर जीव परलोक में जाता है ।
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