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रंगों का ध्यान बहुत ही महत्व पूर्ण है। व्यक्तित्व को रूपान्तरित करने की सबसे अधिक शक्तिशाली किन्तु सरल प्रक्रिया है-लेश्या ध्यान । यदि कोई व्यक्ति दृढनिश्चय के साथ लेश्या ध्यान का प्रयोग करता है तो स्वभाव अपने आप बदल जाता है।
श्वास प्रेक्षा, शरीर प्रेक्षा, समवृत्ति श्वास प्रेक्षा, चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा, लेश्या ध्यान, कायोत्सर्ग-ये सारी प्रक्रियाएं हैं, रूपान्तरण की। लेश्या ध्यान के द्वारा रूपान्तरण के बाद दमन समाप्त हो जाता है, क्योंकि रूपान्तरित व्यक्ति के लिए दमन की जरुरत नहीं होती। जब तक शोधन नहीं होता, रूपान्तरण नहीं होगा।
व्यक्तित्व का रूपान्तरण लेश्या की चेतना के स्तर पर हो सकता है। जब भाव बदल जाता है, तब भाव के पीछे चलने वाला विचार अपने आप वदल जाता है। जब विचार बदल जाता है तब विचार के पीछे चलने वाला व्यवहार अपने आप बदल जाता है।
___ रंग हमारे शरीर को बहुत प्रभावित करते हैं। रंग का साक्षात्कार करने के लिये पित्त की स्थिरता या एकाग्नता अनिवार्य है। भावना के प्रयोग में व्यक्ति स्वतः सूचन द्वारा अपनी चेतना का और वातावरण को बदलता है, अपने आपको परिवर्तित कर सकता है। दूसरे रंगों का देखना भी संकल्प शक्ति और वर्ण शक्ति का परिणाम है । लेश्या-ध्यान की विधि में एक अति महत्व की बात है-विभिन्न रंगों में होने वाले विभिन्न परिणामों और परिवर्तन का अनुभव करना चाहिए।
_ लेश्याध्यान-साधना की अनेक प्रकार की निष्पत्तियां है वे निष्पत्तियां आन्तरिक भी है और बाह्य भी। ध्यान की आन्तरिक निष्पत्ति है-आभामण्डल का परिष्कार । जिसका आभामंडल निर्मल हो गया, लेश्याए विशुद्ध हो गई, तो समझा जा सकता है कि व्यक्ति ध्यान करता है।
लेश्या के परिवर्तन के द्वारा ही धर्मसिद्ध हो सकता है। कृष्ण, नील और कापोत-ये तीन लेश्याए बदल जाती है और तेजस्, पद्म और शुक्ल-ये तीन धर्म लेश्याए अवतरित होती है। ___ कृष्णलेल्या में आवृत्ति ज्यादा, तरंगे छोटी। उत्तरोत्तर लेश्या में तरंग की लम्बाई बढ़ती जाती है, आवृत्ति कम हो जाती है-यथा-शुक्ललेश्या में पहचते ही आवृत्ति कम हो जाती है, केवल तरंग की लम्बाई मात्र रह जाती
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