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है। एक ही तरंग बन जाती है। इस लेश्या में व्यक्तित्व का पूरा रूपान्तरण हो जाता है। जैसे आभामंडल निर्मल होता है, वैसे-वैसे व्यक्ति का चरित्र शुद्ध होता चला जाता है। चरित्र परिवर्तन का मूल आधार है-लेश्या का परिवर्तन और आभामंडल का परिवर्तन ।
अस्तु जैन श्वेताम्बर महासभा के पुस्तकाध्यक्षों तथा जैन भवन के पुस्तकाध्यक्षों के हम बड़े आभारी है जिन्होंने हमारे सम्पादन के कार्य में प्रयुक्त अधिकांश पुस्तकें हमें देकर पूर्ण सहयोग दिया।
गणाधिपति गुरदेव श्री तुलसी तथा आचार्य महाप्रज्ञ तथा महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभाजी की महान् दृष्टि हमारे पर रही है जिसे हम भूल नहीं सकते। युगप्रधान आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने प्रस्तुत कोश पर अपने व्यस्त समय में आशीर्वाद लिखा हम उनके प्रति कृतज्ञ है। ___ जैन विश्वभारती के निदेशक श्री नथमलजी टांटिया का हमें बराबर सहयोग रहा है। उनकी इच्छा थी कि इस कोश से सम्बन्धित कार्य को तीव्रगति से किया जाय। हम उनके प्रति कृतज्ञ है। कलकत्ता युनिवर्सिटी के भाषा-विज्ञान के प्राध्यापक डा० सत्यरंजन बनर्जी का समय-समय पर मार्ग दर्शन मिलता रहा उनके प्रति हम शुभकामना करते है।
हम जैन समिति के सभापति श्री गुलाबमलजी भंडारी, मन्त्री श्री सुशील कुमार जैन, उपमन्त्री श्री सुशीलकुमार बाफणा, श्री धर्मचंद राखेचा, श्री पन्नालाल पुगलिया, श्री हीरालाल सुराना, वरिष्ट सदस्य श्री नवरतनमल सुराना, श्री सुमती चंदजी गोठी, श्री गलाबमलजी चोरडिया, श्री पद्मचंद रायजादा, श्री पद्मचंद नाहटा आदि सभी बन्धुओं को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने हमारे विषय कोश की परिकल्पना में किसी न किसी रूप में सहयोग प्रदान किया। जैन विश्वभारती के कुलपति श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया का हमारे कार्य में सहयोग रहा हैतदर्थ उनके प्रति श्रद्धावनत बनते हैं।
राज प्रोसेस प्रिन्टर्स के मालिक तथा उनके कर्मचारी भी धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने इस पुस्तक का सुन्दर मुद्रण किया है ।
कलकत्ता भाद्र शुक्ला त्रयोदशी, २०५८ दिनांक ३१ अगस्त २००१
श्रीचन्द चोरड़िया, न्यायतीर्थ (स्य )
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