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________________ ( ४.७ ) सयणाहिं सो णिज्जेसह महा। णिय-सुरि-सत्त-भूमि-थिय-मंडा ॥ तहु विषाहु तर्हि पारंभेव्यउ॥ तेण वि णिय-मणि अवहेरिव्यउ॥ सायरदत्त-तणय पोमाषद ।। अवर सुलक्खण सुर-गय-घर-गह ॥ पोमसिरित्ति कणयसिरि सुंदरि । घिणयसिरि त्ति अवर वर पणसिरि ॥ भवण-मझि माणिक-पईवइ । रयण-चुण्ण-रंगापलि भाषा । एयहि सहुँ तहिं अच्छह मणहरु॥ उण्णाधिय इण-णव-कंकण-करु । घर पहुया करयलु करि ढोया । जणणि तासु पच्छण्णु पलोयह । -विरजि० संघि ४/कड २ गौतम गणधर कहते है कि हे श्रेणिक ! तुम्हारे पुत्र कूणिक को मैं सम्बोधित करूंगा और यह अतशान पाकर आनन्दित होगा। उसी समय जम्बूस्वामी भी वहाँ आयेगा और यह भक्तिपूर्वक अरहंत दीक्षा मांगेगा। किन्तु उसके बंधुजन उसे बलपूर्वक रोकेंगे और वह अपने नगर में सप्त भूमि प्रासाद अर्थात् सतखण्डे महल में रहने लगेगा। फिर उसके विवाह की तैयारी की जायेगी। किन्तु वह अपने मन में अवहेलना करेगा, तथापि सागरदत्त सेठ की पुत्री पद्मावती, देवगजगामिनी सुलक्षणा, पद्मश्री, सुन्दरी, कनकनी, विनयश्री, धनभी, भवन के मध्य माणिक्य प्रदीप के समान माणिक्यवती और स्त्रों के चूर्णों से निर्मित रंगावली के समान सुन्दरी रंगावली, इनके साथ वह वर के रूप में नये कंकन बांधे हाथ उठाकर उन बधुओं का पाणिग्रहण करेगा। उसी रात्रि में जब उसकी माता चुपचाप देख रही थी। •४ गृह में चोर-प्रवेश तहि अवसरि सुरम्म देसंतरि । विज्जुराय-सुख, पोयणपुरवरि ॥ विज्जुप्पा णामें सुहऽग्गणि। कुछउ सो अरि-गिरि-सोदामणि ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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