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( ४०६ ) राजा श्रेणिक द्वारा अंतिम केषली विषयक प्रश्न ष गौतम गणधर का उत्तर
भगवान महावीर विचरण करते हुए तथा अपने धर्मोपदेश से समस्त जगत को अलंकृत्त करते हुए यथा समय विपुलाचल पर्वत पर आकर विराजमान हुए।
तब मगध के राजा श्रेणिक भक्तिपूर्वक इनकी वंदना के लिए गया और भगवान के समोसरण के दर्शन किये। फिर मगध नरेश ने धर्मभाव से प्रश्न किया- देव इस भारतवर्ष में अन्तिम केवलज्ञानी कौन होगा ? इस पर गणधर गौतम बोले-हे राजन् ! यह जो तुम अपने सम्मुख विद्युत् के समान कांतिवान और गुणवती अप्सराओ सहित विद्यत्माली देव को देख रहे हो, यही आज से सातवें दिन अरहदास सेठ की उस जिनदासी सेठानी के गर्भ में उत्पन्न होगा। जब वह पके हुए शालिक्षेत्र, जलती हुई अग्नि, मदोन्मत्त तथा बहुत से मद से आच्छादित हाथी और देव द्वारा दिये हुए जम्बूफल के आहार को अपने स्वप्न में देखेगी, तब उस स्वप्न के फलस्वरूप उनका पुत्र जम्बूदेव द्वारा पूजा प्राप्त करेगा-और इस पृथ्वी पर उसका नाम जम्बूस्वामी होगा और वह उसी जन्म में निर्वाण प्राप्त करेगा। .
२ जंबूस्वामी से प्रसंग में
घड्ढमाणु पावापुर - सर • पणि। णिद्ध-णील-णप-चउरंगुल-तणि ॥ तझ्यहुँ जाएसइ णिव्याणहु।
अचलाहु केवल-णाण-पहाणहु । घत्ता-हउँ केवल्लु अइणिम्मलु पाषिषि समउ सुहम्मे । एउ जि पुर तोसिय-सुरु आवेसमि हय-कम्में ॥
-~-वीरजि० संधि ४/कड २ उसी समय स्निग्ध नीलवर्ण चौरानवें अंगुल ऊँचे शरीर के धारी वर्षमान पावापुर के सरोवर युक्त वन में ऐसे निर्वाण को प्राप्त होंगे, जो अचल है और केवलशान प्रधान है। उस समय मैं अर्थात् गौतम गणधर अति निर्मल केवलशान प्राप्त करेगा और कर्मघाती गणधर सुधर्म सहित इसी देवों को संतुष्ट करने वाले राजगृह नगर में आऊँगा।
'३ जंबूस्वामी का विवाह
सुणि सेणिय कूणिउ तुह गंदणु । संबोहेसमि सुपणा णंदणु ॥ जंबूलाषि षि तहिं आवेसइ ॥ अरुह-विक्स भत्ति मग्गेसह ।।
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