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अथवा वह मलेच्छ पुरुष यदि मनुष्य को खली समझकर तथा बालक को तुम्बा मानकर पकावे तो उन्हें प्राणी के वध का पाप नहीं होता है- यह हमारा सिद्धांत है ।
कोई पुरुष मनुष्य को अथवा बच्चे को खल्ली का पिंड मानकर उसे शूल में वेधकर आग में पकानें तो वह पवित्र है । वह बुद्ध के पारणा के योग्य है ।
आर्द्र कुमार ! जो पुरुष प्रतिदिन दो हजार शाक्य भिक्षुओं को अपने यहाँ भोजन कराता है वह महान पुण्यपुंज को उपार्जन करके आरोप्य नाम के सर्वोत्तम देवता होता है ।
(ख) आर्द्र कुमार का उत्तर ।
अजोग रूवं इह संजयाणं, पावं तु पाणाण पसज्झ काउं । अबोहर दोह वितं असाहु, वयंति जे यावि पडिस्सुणंति || उड्ढ अहेय तिरियं दिसासु, विण्णायलिंगं तस्थावराणं । भूयाभिसंकाए दुगंछमाणे, चदे करेजा चा कुओबिहऽत्थी ॥ पुरिसेन्ति विण्णन्ति ण एवमत्थि, अणारिए से पुरिसेतहाहु | को संभवो १ पिण्णगपिंडियाए, वायावि एसा बुइया असच्चा | बायाभिजोगेण जमावहेजा, णोतारिसं वायमुदाहरेजा । अठ्ठाणमेयं वयणं गुणाणं, णो दिखिए बूय सुरालमेयं ॥ जब अह अहो एव तुब्भे, जीवाणुभागे सुविचितिते य । पुम्बं समुई अवरं च पुट्ठे, ओलोइए पाणितलट्ठिए वा ॥ जीवाणुभागं सुविचितयंता, आहारिया अण्णविहीए सोहि । ण वियागरे उण्णपओपजीवी, एसोऽणुधम्मो इह संजयाणं ॥ सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयपणितिए भिक्खुयाणं । असंजय लोहियपाणि से ऊ, णियच्छई, गरहमिदेव लोए ।। थूलं उरब्भं इह मारियाणं, उद्दिट्ठभत्तं च पगप्पपत्ता | तं लोणतेल्लेण उवक्खडेत्ता, सपिप्पलीयं पगरं तिमंसं ॥ तं भुंजमाणा पिसियं पभूयं णो उबलिप्पामो वयं रणं । इच्चेषमाहंसु अणज्जधम्मा, अणारिया बाल रसेसु गिद्धा ॥ जे याचि भुंजंति तहप्पगार, सेवंति ते पाचमजाणमाणा । मणं ण एयं कुसला करेंति, वायावि एसा बुझ्या उमिच्छा || सव्वेसि जीवाणं दयट्टयाए, सावज्जदोसं परिवजयंता । तस्संकिणो इसिणो णायपुत्ता, उद्दिट्ठमत्तं
परिषज्जयंति ॥
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