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( 37 ) इनके उत्तराधिकारी जम्बूस्वामी हुए । उनका जीवनकाल इस प्रकार रहा । गृहस्थ छद्मस्थ
केवली १६ वर्ष २० वर्ष
४४ वर्ष जम्बूस्वामी के पश्चाद् कोई केवली नहीं हुआ। यहाँ से श्रुतकेवली चतुर्दशपूर्वी की परम्परा चली। छह आचार्य श्रतकेवली हुए १-प्रभव
४-संभूत विजय २-शययम्भव
५-भद्रबाहु ३-यशोभद्र
६- स्थूलभद्र स्थूलभद्र के पश्चात चार पूर्व नष्ट हो गए। वहाँ से दस पूर्वी की परम्परा चली। दस आचार्य दस पूर्वी हुए । १-महागिरि
६-रेवतिमित्र २-सुहस्ती
७-मंगु ३-गुणसुन्दर
८-धर्म ४-कालकाचार्य
६-चन्द्रगुप्त ५-स्कन्दिलाचार्य
१०-आर्यवज्र तीन प्रधान परम्पराएँ
१- गणधर वंश २-वाचक वंश-विद्याधर वंश
३-युगप्रधान
प्राचार्य सुहस्ती तक के आचार्य गणनायक और वाचनाचार्य दोनों होते थे। आचार्य सुहस्ती के बाद वे कार्य विभक्त हुए।
हिमवत की स्थविरावलि के अनुसार वाचक वंश या विद्याधर वंश की परम्परा इस प्रकार है
१-आचार्य सुहस्ती २-आर्य बहुल और बलिसह ३-आचार्य उमास्वाति ४-आचार्य श्यामाचार्य ५-आचार्य सांडिल्य या स्कन्दिल [वि. स. ३७६ से ४१४ तक युगप्रधान] ६-आचार्य समुद्र ७-आचार्य मंगसूरि ८-आचार्य नन्दिलसूरि ६-आचार्य नागहस्तिसरि १०-आचार्य रेवतिनक्षत्र १५-आचार्य सिंहसूरि
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