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( 38 ) १२-आचार्य स्कन्दिल [वि. स. ८२६ वाचनाचार्य १३-आचार्य हिमवंत क्षमाश्रमण १४-आचार्य नागार्जनसूरि १५-आचार्य भूतदिन्न । १६-आचार्य लोहित्यसूरि १७- आचार्य दुष्यगणी १८-आचार्य देववाचक (देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण) १६-आचार्य कालिकाचार्य (चतुर्थ)
२०-आचार्य सत्यमित्र (अंतिम पूर्वविद) सम्प्रदाय भेद
तीर्थकर वागी जैन संघ के लिए सर्वोपरि प्रमाण है। वह प्रत्यक्ष दर्शन है।
लम्बे समय में अनेक सम्प्रदाय बन गए। श्वेताम्बर और दिगम्बर जैसे शासन-भेद जैन परम्परा का भेद मूल तत्वों की अपेक्षा ऊपरी बातों या गौण प्रश्नों पर अधिक टिका हुआ है।
गोशालक जैन परम्परा से सर्वथा अलग हो गया, इसलिए उसे निह्नव नहीं माना । थोड़े से मतभेद को लेकर जो जैन शासन से अलग हुए उन्हें निहष माना गया ।
भगवान महावीर के शासन में सात निद्धव हुए । जमाली, रोहगुप्त और गोष्ठामाहिल के सिवाय शेष निह्नव आ, प्रायश्चित ले फिर से जैन परम्परा में सम्मिलित हुए । जो सम्मिलित नहीं हुए, उनकी भी अब कोई परम्परा प्रचलित नहीं है
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आचार्य मतस्थापन उत्पत्ति स्थान
कालमान जमाली बहुरतवाद श्रावस्ती
कैवल्य के १४ वर्ष पश्चात् तिघ्यगुप्त जीवप्रादेशिकवाद ऋषभपुर (राजगृह) कैवल्य के १६ वर्ष पश्चात आषाढ शिष्य अव्यक्तवाद श्वेत विका
निर्वाण के ११४ वर्ष पश्चात अश्वमित्र सामुच्छेदिकवाद मिथिला
निर्वाण के २२० वर्ष पश्चात् गंग द्वैक्रियवाद
उल्लुकातीर निर्वाण के २२८ वर्ष पश्चाद रोहगुप्त त्रैराशिकवाद अंतरंजिका निर्वाण के ५४४ वर्ष पश्चात गोष्ठामाहिल्ल अवद्धिकवाद दशपुर
निर्वाण के ६०६ वर्ष पश्चात परम्परा से दिगम्बर की स्थापना वीर निर्वाण की छठी सातवीं शताब्दी मानी जाती है। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सापेक्ष शब्द हैं। इनमें से एक का नामकरण होने के बाद ही दूसरे के नामकरण की आवश्यकता हुई।
श्वेताम्बर-पट्टावलि के अनुसार जंबू के पश्चात शय्यम्भव, यशोभद्र, संभूत विजय और भद्रबाहु हुए और दिगम्बर मान्यता के अनुसार नंदी, नंदीमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु हुए।
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