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________________ ( २५२ ) २ भगवान महावीर के समसामयिकी घटना परिषद् में श्रेणिक - चेल्लणा को देखकर - साधु-साध्वियों द्वारा निदान भगवान ने मनोस्थिति को जाना अजोत्ति समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथे य निग्गंधीओ य आमंतेत्ता एवं वयासी - 'सेणियं रायं चेल्लणादेवि पासित्ता तुम्हाणं मणंसि इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पजित्था - अहो णं सेणिए राया महिढिए जाव सेत्तं साहु । अहो णं चेल्लणा देवी महिड्ढिया जाव सेत्तं साहुणी || १५ || एवं खलु समणाउसो मएधम्मे पन्नत्ते । इणमेव निग्गंथे पात्रयणे सच्चे, अणुत्तरे, पडिपुण्णे, केवले, संसुद्ध, णेयाउए, सल्लकत्तणे, सिद्धिमग्गे, मुत्तिमग्गे, निव्वाणमग्गे, अवितहमविसंदिद्ध, सव्वदुक्खष्पहीणमग्गे । इत्थं ठिया जीवा सिज्यंति, बुज्झंति, मुच्चंति, परिनिव्वायंति, सव्वदुक्खाण-मंत करेंति ||१६|| जस्सणं धम्मस्सनिग्गंथेसिक्खाए उवट्टिए विहरमाणे पुरादिगिंछाए पुरापिवास पुरावात तवेहि पुरापुट्ठे विरूवरूवेहिं परीसहोवसग्गेहि उदिण्णकामजाए विहरिजा, से य परकम्मेजा । × × × | १७|| aणं सेबहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्या णिसम्म समणं भगवं महावीरं वंदति नर्मसंति, वंदित्ता नमंसित्ता तस्स ठाणस्स आलोयंति पडिकमंति जाव अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जंति ||५९ || - दसासु० द० १० चेल्लणा देवी के साथ श्रेणिक राजा भगवान् के समीप में आने के बाद श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने श्रेणिक राजा भंभसार और चेल्लणा देवी को चार प्रकार की महापरिषद में अर्थात ऋषिपरिषद् यतिपरिषद्- मनुष्य परिषद्, देवपरिषद्, जिनमें हजारों श्रोतागण सुनने के लिए एकत्रित हुए हैं- ऐसी परिषद् के मध्य में विराजमान होकर " और जिस प्रकार कर्मों से बद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं और क्लेश पाते हैं ।" इत्यादि विचित्र प्रकार से श्रुत चारित्र लक्षण धर्म कहा । धर्म कथा सुनकर परिषद् अपने-अपने स्थान गयी और श्रेणिक राजा भी गये || ११ || उस परिषद् में श्रेणिक राजा को और चेल्लणा देवी को देख कर कई एक निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों के मन में इस प्रकार आध्यात्मिक - मनोभाव अर्थात् अंतःकरण की स्फुरणा यावत् मन में संकल्प-विकल्प उत्पन्न हुए ||१२|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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