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( २५३ ) अब प्रथम नियन्थों के विचारों का स्वरूप कहते हैं ।
अहो ! -आश्चर्य है कि श्रेणिक राजा महा-ऋद्धि-महादीप्ति-शाली और महासुखों का अनुभव करने वाला है। जिसने स्नान बलिकर्म कौतक मंगल और प्रायश्चित्त किया है। समस्त भूषणों से अलंकृत होकर चेल्लणा देवी के साथ उत्तम मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों को भोगता हुआ विचरता है।
हमने देवलोक में देवों को नहीं देखा है किन्तु यही साक्षात् देव है ।
यदि इस तप-नियम और ब्रह्मचर्य-गुप्ति की कोई फल सिद्धि है अर्थात् अनशन अदि तप, अभिग्रह लक्षण, नियम, मैथून-निवृत्ति रूप ब्रह्मचर्य-इनके परिपालन में सुचरित रूप में आचरण करने में यदि कोई भी फल की प्राप्ति है तो हम भी भविष्य में इस प्रकार के उदार काम भोगों को भोगते हुए विचरे ।
यह मुनियों का चिन्तन रूप निदान है ।
अब चेल्लणा देवी को देखकर निर्गन्थियों के मन में उत्पन्न हुए विचारों का वर्णन करते है।
महारानी चेल्लणा देवी को देखकर साध्वियाँ विचार करती है कि-आश्चर्य है कि यह चेल्लणा देवी महाऋद्धि, महादीप्तिवाली और महासुखवाली है। यह स्नान कर, बलि कम कर, कौतक, मंगल ओर प्रायश्चित्त कर सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित होकर श्रेणिक राजा के साथ उत्तमोत्तम भोगों को भोगती हुई विचरण करती है ।
हमने देवलोक में देवियों नहीं देखी है किन्तु यह साक्षात देवी है ।
यदि हमारे इस सुचरित तप-नियम और ब्रह्मचर्य का कोई कल्याणकारक विशेष फल हो तो हम भी आगामी काल में इस प्रकार के उत्तम भोगों को भोगती हुई विचरण
यह साध्वियों का चिन्तन रूप निदान है । अनंतर क्या हुआ जो कहते हैं
हे पार्यो ! इस प्रकार से श्रमण भगवान महावीर उन बहुत से साधु और साध्वियों को संबोधन करके कहने लगे कि-श्रेणिक राजा और चेल्लणा देवी को देखकर तुमलोगों के मन में इस प्रकार की आध्यात्मिक संकल्प हुआ
"आश्चर्य है-श्रेणिक राजा इतना महाऋद्धि और महासुख संपन्न है और मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों को भोगता हुआ विचरता है तो यदि हमारे सुचरित तप-नियम और ब्रह्मचर्य पालन का सुफल है तो हमको भी भवान्तर में ऐसे भोग मिले ।"
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