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( ११७ ) इष्टजन से परिवृत्त होकर चंपानगरी का एवं और भी बहुत से ग्राम, आकर ( लवण आदि के उत्पत्ति स्थान ), नगर ( कर से मुक्त शहर ), खेट (धूलिकोट वाले गाँव), कर्बट (= कुनगर) मडम्ब, द्रोणमुख ( जलपथ और स्थलपथ से युक्त निवास स्थान) पत्तन (=वन्दरगाह अथवा केवल जल-मार्गवाली या केवल स्थलमार्ग वाली वस्ती) आश्रम, निगम, संवाह ( पर्वत की तलेटी आदि के गाँव ) और सन्निवेश (= घोष आदि) का आधिपत्य, पुरोवर्तित (आगेवानी), भत्तत्व = पोषकता) स्वामित्व, महत्तरत्व (= बड़प्पन) और आज्ञाकारक सेनापतित्व करते हुए-पालन करते हुए, कथानृत्य, गीतिनाव्य, वाद्य, वीणा, करताल, तुर्य, मेघ, मृदंग को कुशल पुरुषों के द्वारा बजाये जाने से उठने वाली महाधवनि के साथ विपुल भोगों को भोगते हुए विचरें-यों कहकर वे व्यक्ति जयघोष करते थे। कोणिक का भगवान को अभिवन्दन करने के लिए जाना।
तए. णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते xxx चंपाए नयरीए मझमज्झेणं निग्गच्छद, २त्ता जेणेव पुण्णभहे चेइए तेणेव उवागच्छइ, २त्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासइ, पासित्ता आभिसेक्कं हस्थिरयणं ठवेइ, ठवेत्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, २त्ता अवहटु पंच रायकउहाई, तंजहा- खग्गं छत्तं उप्फेसं वाहणाओ वालपीयणयं, जेणेष समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तंजहा
सचित्ताणं व्वाणं विओसरणयाए अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरयणाए एगसाडियं उत्तरासंगकरणेणं चषखुप्फासे अंजलिपग्गहेणं मणसो एगत्तिभापकरणेणं
समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, २ त्ता वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ तंजहा
काइयाए वाइयाए माणसियाए ।
काइयाए-ताव संकुइयग्गहत्थपाए सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे घिणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ ।
घाइयाए-जं जं भगवं वागरेइ एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते । असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय
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