________________
प्रकाशकीय
स्व. श्री मोहनलाल जी बांठिया ने अपने अनेक अनुभवों से प्रेरित होकर, जैन विषय कोश की परिकल्पना प्रस्तुत की थी तथा श्रीचन्द जी चोरडिया के सहयोग से प्रमुख आगम ग्रन्थों का मंथन एवं चिंतन करके, एक विषय सूची प्रस्तुत की थी। फिर उस विषय सूची के आधार पर जैन आगमों के विषयानुसार प्रायः १००० विषयों पर पाठ संकलित किये गये। इसका संकलन जैनदर्शन समिति के पास सुरक्षित है ।
लेश्याकोश, क्रियाकोश, उन्होंने क्रमशः सन् १६६६ व १९६६ में प्रकाशित किये थे।
_इसके बाद पृद्गलकोश, ध्यानकोश, संयुक्त लेश्याकोश आदि का कार्य स्व० श्री मोहनलालजी बांठिया ने पूर्ण किया था जो अभी प्रकाशित नहीं हुए हैं। इन कोशों को जैन विश्वभारती लाडणं, जल्दी ही प्रकाशित करेगी। परिभाषा कोश' का कार्य स्वर्गीय श्री मोहनलाल जी बांठिया के सान्निध्य में चला। मैं यह भी उल्लेख करना चाहूँगा कि स्व० श्री मोहनलाल जी बांठिया के इस प्रयत्न और प्रयास में सक्रिय सहयोग दियान्यायतीर्थ भीचन्द चोरडिया ने ।
तत्पश्चात भगवान महावीर की २५वीं निर्वाण शताब्दी के सुअवसर पर स्वर्गीय साहित्य वारिधि की सत्प्रेरणा से वर्धमान जीवन कोश का शुभारम्भ १७-५-१६७५ को स्व० श्री मोहनलालजी बांठिया ने शुभारम्भ किया। जैन दर्शन समिति द्वारा श्री बांठिया ने अपने जीवन काल में श्रीचन्दजी चोरड़िया के सहयोग से वर्धमान जीवन कोश का काफी संकलन कर लिया था। परन्तु २३-६-१९७६ को उनका आकस्मिक स्वर्गवास हो गया। बांठिया के स्वर्गवास पर जैन दर्शन समिति को बहुत बड़ा धक्का लगा।
___ अस्तु वर्धमान जीवन कोश के साथ-साथ श्रीचन्दजी चोरडिया अपनी स्वतंत्र कृति 'मिथ्यात्वीका आध्यात्मिक विकास' पुस्तक की तैयारी कर रहे थे। फलस्वरूप मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास पुस्तक ३०-११-१९७७ को जैन दर्शन समिति द्वारा प्रकाशित हुई। निःसन्देह दार्शनिक जगत में श्री चोरड़िया जी यह एक अप्रतिम देन है । इसकी भी प्रतिक्रिया अच्छी रही। अतः वर्धमान जीवनकोश के प्रकाशन में विलम्ब हुआ।
स्वर्गीय श्री बांठियाजी के स्वर्गवास के चार वर्ष पश्चात वर्धमान जीवन कोश प्रथम खण्डका प्रकाशन (१६८० ई० में) हुआ। इसके फिर चार वर्ष पश्चात् वर्धमान जीवन कोश द्वितीय खंड का प्रकाशन (१९८४ ई० में ) हुआ। वर्धमान जीवनकोश सर्वत्र समारत हुआ। तथा जेन दर्शन और वाङ्मय के अध्ययन के लिए जिस रूप में इन दोनों खण्डों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org