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( ५४ ) कालास्यावेषि पुत्र अनगार ने स्थविर भगवंतों से प्रश्न किये।
एत्थणं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे संबुद्ध थेरे भगवते वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता-णमंसित्ता एवं वयासी
-भग० श १/६/सू ४२६ स्थविर भगवंतों का उत्तर सुनकर वे कालास्यवेषिपुत्र अनगार बोध को प्राप्त हुए और तब उन्होंने स्थविर भगवंतों को वंदन-नमस्कार किया
तएणं ते थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अणगारं एवं वयासी-सहहाहि अजो ! पनियाहि अजो ! रोएहि अजो ! से जहेयं अम्हे वदामो।
तएणं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे थेरे भगवंते वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुब्भं अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्म उवसंपजित्ता णं विहरित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं ।
-भग० श १/उह/सू ४३०, ४३१ तब उन स्थविर भगवंतों ने कालास्यवेषिपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा किहे आर्य ! हम जैसा कहते हैं वैसी ही श्रद्धा रखो, प्रतीति रखो, रूचि रखो।
तब कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने उन स्थविर भगवंतों को वंदना की-नमस्कार किया। तत्पश्चात वे इस प्रकार बोले-हे भगवन् ! मैंने पहले चार महावत वाला धर्म स्वीकार कर रखा है, अब मैं आपके पास प्रतिक्रमण सहित पाँच महाव्रत वाला धर्म स्वीकार करके विचरने की इच्छा करता हूँ। - तब स्थविर भगवंत बोले-हे देवानुप्रिय ! जैसे सुख हो-वैसे करो- विलंब मत करो।
तएणं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे थेरे भगवंते, वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहत्वइयं सपडिक्कमणं धम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
तएणं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाडणित्ता x x x तं अट्ठ अराहेइ, आराहेत्ता, चरिमेहिं उस्सासनीसासेहिं सिद्ध , बुद्ध , मुत्ते, परिनिव्वुडे, सव्वदुक्खष्पहीणे ।
-भग० श १/३६/सू ४३२, ४३३ तब कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने स्थविर भगवंतों को वंदना की, नमस्कार किया
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