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और चार महाव्रत धर्म से प्रतिक्रमण सहित पाँच महाव्रत रूप धर्म स्वीकार करके विचरने
लगे ।
इसके बाद कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्यायका पालन किया । आचार का उन्होंने सम्यग् रूप से पालन किया । अभीष्ट प्रयोजन का सम्यग् रूप से
आराधन किया |
अन्तिम श्वासोच्छ्रास द्वारा सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए, परिनिवृत्त हुए यावत् सब दुःखों से रहित हुए ।
.४ गांगेय अणगार -
ते कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे णामं णयरे होत्था - वण्णओ । दूतिपलासए चेहए । सामी समोसढे । परिसा निग्गया । धम्मो कहिओ । परिसा पडिगया ॥ ७७ ॥
तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावञ्चिज्जे गंगेए नामं अणगारे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेच उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्या समणं भगवं महावीरं एवं वयासी - ॥ ७८ ॥
तप्पभि चणं से गंगेये अणगारे समणं भगवं महावीरं पच्चभिजाणइ सव्वण्णु, सव्वदरिसिं । तरणं से गंगेये अणगारे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण -पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं बयासी - इच्छामिणं भंते! तुब्भं अंतियं खाउजामाओ धम्माओ पंचमहत्वइयं एवं जहा कालासवेसियपुत्तो तहेव भाणियव्वं, जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ॥१३३॥ - भग० श ६ / ३३२/०७७, प्र०७८, १३३/१० ४१३, ४३१
उस काल उस समय में वाणिज्य-ग्राम नामक नगर था । वहाँ द्युतिपलाश नामक चैत्य उद्यान था । वहाँ श्रमण भगवान महावीर पधारे । परिषद् वंदन के लिए निकली । भगवान् ने धर्मोपदेश दिया । परिषद् वापिस चली गई ।
उस काल उस समय में पुरुषादानीय भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्यानुशिष्य गांगेय नामक अनगार थे । जहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी थे - वहाँ आये और भ्रमण भगवान महावीर के न अति समीप, न अति दूर खड़े रहकर श्रमण भगवान महावीर स्वामी से पूछा --
प्रश्नोत्तर होने के बाद गांगेय अणगार ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को सर्वज्ञ और सर्वदर्शी जाना । पश्चात गांगेय अणगार ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को तीन
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