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________________ है, परिणत है क्योंकि अजीवों के द्वारा देखा जाता है। निश्चित होता है अधिक निश्चित होता है अतः प्रमाण से लोक जाना जाता है-कहा जाता है । हा भगवन ! इस कारण से हे आर्यो ! ऐसा कहा जाता है-असंख्येय लोक में वैसा ही जानना । इस कारण से वे पार्श्वनाथ के शिष्य स्थविर भगवंत-श्रमण भगवान महावीर को 'सर्वज्ञ-सर्वदशी' इस प्रकार जानते हैं । उस चर्चा के बाद-वे स्थविर भगवंत श्रमण भगवान महावीर को नमस्कार करते हैं-वंदन-नमस्कार कर वे इस प्रकार बोले कि हे भगवन् ! आपके पास से चतुर्याम धर्म को छोड़कर प्रतिक्रमण सहित पंच महावतों को स्वीकार कर विहरण करने की इच्छा है ।। प्रत्युत्तर में भगवान ने कहा-हे देवानुप्रिय ! जैसा सुख हो वैसा करो--प्रतिबंध न करो। तत्पश्चात भगवान महावीर से प्रतिक्रमण सहित पंच महाव्रतों को उन पार्श्वनाथ स्थविरों ने स्वीकार किया । अनुक्रमसे कितनेक स्थविरों ने सर्वदुःखों का अंत किया। कितनेक देवलोक में उत्पन्न हुए। .३ कालस्यवेषिपुत्र अणगार का चतुर्याम से पंचयाम धर्म स्वीकार तेणं कालेणं, तेणं समएणं पासावञ्चिज्जे कालासवेसियपुत्ते णाम अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता थेरे भगवते एवं agreft x x x -भग० श १/उह/सू ४२३ उस काल उस समय में पार्वापत्य अर्थात् भगवान पार्श्वनाथ के सन्तानियेशिष्यानुशिष्य कालास्यवेषिपुत्र नामक अनगार जहाँ स्थविर भगवान थे वहाँ गये। वहाँ जाकर उन स्थविर भगवंतों से इस प्रकार पूछा विवेचन-उस काल उस समय में अर्थात् जब भगवान पार्श्वनाथ मोक्ष प्राप्त कर चुके थे और २५० वर्ष बाद जब भगवान का शासन चल रहा था, उस समय भगवान पार्श्वनाथ के शिष्यानुशिष्य कालास्यवेषिपुत्र अनगार विचर रहे थे। उन्होंने भगवान के शासन में दीक्षा ली थी। उसी समय भगवान महावीर के शासन के स्थविर भी विचर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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