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श्रमण भगवान् महावीर और शासन संपदा -
.१४ वादी - संख्या
(क) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स वत्तारि सया वाईणं सदेवमणुया सुरम्भि लोगम्मि वाए अपराजियाणं उक्कोसिया बाइसंपया होत्था ।
श्रमन भगवान महावीर के देव, मनुष्य और असुर, ( परिषद् ) लोक में वाद में पराजित न हो सके ऐसे चार सौ वादियों की उत्कृष्ट संपदा थी ।
(ख) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स वत्तारि सया वादीणं सदेवमणुया सुराए परिसाए अपराजियाणं उक्कोसिता वातिसंपदा हुत्था ।
- ठाण० स्था ४/४/ सू ६४८
( ग ) x x x चत्वारि शतानि ४०० वादिनाम् ।
(घ) x x x वादिनां तु चतुः शती
(छ) चतुःशतानि संप्रोक्तास्तत्रानुत्तरवादिनः
- त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग १२ / श्लो ४३८
(च) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स वत्तारि सया वाईणं सदेवमणुयासुराए परिसाए वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ।
- कप्प० सू १४२ / पृ० ४४
(ज) चत्तारि सयई बाई- वरई
(झ) चतुःशतप्रमाणा
-सम० सम ४००
- आव० निगा २८६ / मलय टीका
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दिय - सुगय-कविल-हर-णय-हरहं ॥
- उत्तपु० /पर्व ७४ / श्लो ३७८ पूर्वार्ध
भवन्त्यनुत्तरवादिनः || २११
- वीरजि० संधि २ / कड ८
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भगवान् के चार सौ ऐसे श्रेष्ठवादी थे जो द्विज, सुगत (बुद्ध) कपिल और हर (शिव) इनके सिद्धांतों का खंडन करने में समर्थ थे ।
- वीरवर्धमानच० अधि १६
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