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( ३८ )
• १५ वैक्रियलब्धि धारी
(क) समणस्स भगवओ महावीरस्स सत्त वेउव्वियसया होत्था ।
श्रमण भगवान् महावीर के सात सौ शिष्य वैक्रियलब्धिवाले थे । (ख) सप्त शतानि ७०० वैक्रियलब्धिमतां
- आव० निगा २८६ / मलय टीका
(ग) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स सत्त सया वेउव्वीणं अदेवाणं देवढिपत्ताणं उक्कोसिया वेव्विसंपया होत्था |
- कप्प० सू १४० / पृ०४४
(घ) ( सप्तशत्यथ ) वैक्रियलब्ध्यनुत्तरगति के बलिनां पुनः । -- त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग १२ / श्लो ४३८/ पूर्वार्ध
(च) शतानि नवविज्ञ या विक्रियद्धिविवर्द्धिताः ।
--सम० पइ सम सू ३६
— उत्तपु० पर्व ७४ / श्लो ३७७ / पूर्वार्ध
(छ) मुनयो विक्रियद्ध, र्यादयाः स्युः शतानि नवास्य च ॥ - वीरवर्धमानच० अधि १६ / श्लो २१० / उत्तरार्ध
नौ सौ विक्रिया ऋद्धि के धारक थे ।
• १६ अनुत्तरोपातिक संपदा -
(क) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अट्ठसया अणुत्तरोववाहयाणं देवाणं गइकल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभद्धाणं उक्कोसिया अणुत्तरोववाइयसंपया होत्था |
-सम० सम ८००
-- ठाण० स्था८, सू ११५, कप्प ० सू १४४
(ख) श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य x x x अष्टौ शतानि ८०० अनुत्तरोपपातिनाम् ।
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- आव० निगा २८६ / मलय टीका
श्रमण भगवान महावीर के अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने वाले, कल्याणकारक गतिवाले कल्याणकारक स्थितिवाले और आगामी काल में निर्वाण रूपी भद्रवाले साधुओं की उत्कृष्ट अनुत्तरौपातिकी ८०० संपदा थी ।
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