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अंतक्रिया
(ग) भगवान् के सिद्धत्व के साथ अंतक्रिया
( ३५ )
रिस - सहसेण समउ रच छिंदणु । सिद्धउ जिणु सिद्धत्थहु
णंदणु ||
भगवान के साथ अन्य एक सहस्र मुनि भी सिद्धत्व को प्राप्त हुए ।
१२. जिन - केवली -
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(क) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स सत्त साया केवलनाणीणं संभिन्नवरनाणदंसणधराणं उक्कोसिया केवलनाणिसंपया होत्या ।
- कप्प ० सू १३६ ( पृ० ४४ )
(ख) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स सत्त जिणसया होत्था ।
- वीरजि० संधि ३ / कड २
श्रमण भगवान महावीर के सात सौ जिन ( केवली ) थे ।
(ग) कइणं भंते! देवाणुप्पियाणं अंतेवासीसयाई सिज्झिहिंति जाव-अंत करेहिति
?
एवं खलु देवाणुपिया ! मम सत्त अंतेवासिसयाई सिज्झिहिति जावअंत रेहिति ।
(ख) पंचमावगमाः सप्तशतानि परमेष्ठिनः ।
(छ) सत्तेव सुकेवलि - जइ-वरहं ॥
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- भग० श ५ / ३४
श्रमण भगवान् महावीर ने गौतम से कहा कि मेरे सात सौ शिष्य सिद्ध होंगे यावत सर्व दुःखों का अंत करेंगे ।
-सम० सम ७००
(घ) ( श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य ) सप्तशतानि ७०० केवलज्ञानिनां ।
- आव० निगा २८६ । मलय टीका
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- उत्तपु० पर्व ७४ / श्लो ३७६ / उत्तरार्ध
- वीरजि० संधि २ /कडक
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