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(झ) श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य x x x आर्यचंदनाप्रमुखाणि षट्त्रिंशदायिका सहस्राणि ३६०००
-आव० निगा २८६/मलय टीका भगवान वर्द्धमान स्वामी के आर्यचंदना प्रमुख आदि ३६००० साध्वियाँ थी। (अ) भगवान की शासन संपदाआर्यिकायें
विगुणियवीससहस्सा णेमिस्स कमेण पासवीराणं । अड़तीसं छत्तीसं होंति सहस्साणि विरदीओ ।।
४००००/३८०००/३६००० -तिलोप० अधि ४/गा ११७६
नेमीनाथ के तीर्थ में द्विगुणित बीस हजार अर्थात् चालीस हजार और क्रम से पार्श्वनाथ एवं वीर भगवान के तीर्थ में ३८००० हजार और ३६००० आर्यिकायें थीं। .११ परिनिर्वाण प्राप्त साधु-साध्वियां (क) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स सत्त अंतेवासिसयाई सिद्धाई जाच सव्वदुक्खप्पहीणाई', चउद्दस अज्जियासयाई सिद्धाइ।
-कप्प० सू १४३/पृ० ४४ श्रमण भगवान महावीर के ७०० साधु और १४०० साध्वियों ने सिद्ध यावत् सर्व दुःख का अंत किया ।
कितने शिष्य सिद्ध होंगे(ख) कति णं भंते ! देवाणुप्पियाणं अंतेवासीसयाइ सिज्झिहिंति जाव अंत करेहिति ?
तएणं समणे भगवं महावीरे तेहिं देवहिं मणसा पुढे तेसिं देवाणं मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेइ-एवं खलु देवाणुप्पियाणं! मम सत्त अंतेवासीसयाई सिज्झिहिंति जाव अंत करेहिति ।
-भग० श ५/उ ४/पृ० ८४/पृ० २०२
देवों के प्रश्न करने पर भगवान ने कहा कि मेरे ७०० शिष्यों सिद्ध होंगे यावत् अंतक्रिया करेंगे।
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