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जगत् के सारभूत आचारांग के धारी थे। इन्होंने आचारांग शास्त्र का पूर्णज्ञान अपने मन मैं धारण किया था । तथा शेष आगमों का उन्हें केवल एकदेश अर्थात् संक्षिप्त ज्ञान था ।
.७ भगवान महावीर की शिष्य परम्परा
समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जाव
जुतकरभूमी ।
-- ठाण० स्था ३/३ ४/सू ५३१
श्रमण भगवान् महावीर के यावत तीसरे पुरुष ( जंबुस्वामीपर्यंत ) युगांतकृतभूमिमोक्षमार्ग चला ।
अंतिमदेशना के पश्चात्
८. भगवान् की शिष्य परंपरा
तस्याओ पुरिसजुगाओ
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इत्युक्तवन्तं श्रीवीरं सुधर्मा गणभृद्वरः । पप्रच्छ केवलादिन्यः किं कुत्रोच्छेदमेष्यति ।। २०८ स्वाम्यथाSSख्यन्मम मोक्षाद्गते काले कियत्यपि । जंबूनाम्नस्तव शिष्यात् परं भावि न केवलम् || २०९ उच्छिन्ने केवले भावी न मनःपर्ययोऽपि हि । पुलाकलन्धिश्च नचावधिश्च परमो न हि ॥ २१० क्षपकोपशम श्रेण्यौ न च नाऽऽहारकं वपुः । जिनकल्पो न हि न हि संयमत्रितयं यथा ॥ २१९ ॥ - त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग १३
भगवान् कहा - मेरे परिनिर्वाण होने के पश्चात् कितनेक काल में जंबू नामक सुधर्मा स्वामी का शिष्य अंतिम केवली होगा । इसके पश्चात् केवल ज्ञान उच्छेद को प्राप्त होगा । केवल ज्ञान का उच्छेद होने से निम्नलिखित का भी उच्छेद हो जायेगा -
(१) मनःपर्यव ज्ञान, (२) पुलाक लब्धि, (३) परमावधि ज्ञान, (४) क्षपक श्रेणी, (५) उपशम श्रेणी, (६) आहारक शरीर (७) जिनकल्प |
८, ६, १० परिहारविशुद्धि-सूक्ष्मसंप राय- यथाख्यातसंयम
.९ साधु-संख्या
(क) समणस्स णं भगवओ महावीरस्स उस समणसाहस्सीओ उक्कोसिया मणसंपया होत्था ।
- सम० सम १४ / सू ४
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