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________________ .४ ग्यारह अंग धारी : पुणु पंडु ( ३० ) णक्खत्तउ पुणु ध्रुवसेणु णाम .५ गणधर के समान ज्ञानी : धत्ता - अणुकंसंड अप्पड जिणिचि थिउ पुणु सुहदु जणसुहयरु ! जसभदु अखुदु अमंद - महणाणें णावर गणहरु || .६ आचारांग के धारी थे : भद्दवाहु लोहंकु आयारंग - धारि यहि स सत्थु सेसहि एक्कु देसु जसवालउ | गुणाल || भडारउ । जग-सारउ ॥ मणि माणिउ । परियाणिउ ॥ वीर भगवान् के निर्वाण प्राप्त करने पर मद और राग को विनष्ट कर इन्द्रभूति गणधर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया। वे अपने कर्मों से मुक्त होकर, विपुल गिरि पर्वत पर निर्वाण रूपी शाश्वत स्थान को प्राप्त हो गये । Jain Education International - वीरजि० संधि ३ / कड २, ३ उसी दिन सुधर्म मुनि को पापमल का प्रक्षालन करने वाला केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ । सुधर्म मुनि का निर्वाण होने पर काम को जीतने वाले जम्बू नामक अणगार को वहीं पंचम दिव्यज्ञान अर्थात् केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ ! उक्त तीन प्रधान केवल ज्ञानी अणगारों के पश्चात् क्रमशः नन्दि, नन्दिमित्र, अपर ( अपराजित ), और चौथे गोवर्धन तथा पाँचवें भद्रबाहु -ये मेघ के समान गम्भीर ध्वनि करनेवाले समस्त श्रुतज्ञान के पारगामी अर्थात् श्रुत केवली हुए जिन्होंने मिथ्यात्व रूपी मल को दूर कर शुद्ध वीतराग-भाव प्राप्त किया । उनके पश्चात् ( ग्यारह अंगों तथा दश पूर्वों के ज्ञाता ) क्रमशः निम्नलिखित एकादश मुनि हुए ) - विशाख, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नागसेन, सिद्धार्थ, धृतिसेन, विजय, बुद्धिल, गंग और निःशल्य धर्मसेन । इसके पश्चात् नक्षत्र, यशपाल, पाण्डु, ध्र ुवसेन और कंस - ये पाँच ग्यारह अंगधारि हुए । कंस के पश्चात् सुभद्र और यशोभद्र मुनि हुए जो आत्मजयी, जनसुखकामी, महान तीव्र बुद्धि तथा गणधर के समान ज्ञानी थे 1 यशोभद्र के पश्चात् भद्रबाहु तथा लोहाचार्य भट्टारक हुए । For Private & Personal Use Only ये ( चारों आचार्य ) www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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