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वर्धमान जीवन - कोश
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भगवान महावीर का जीव ब्रह्मलोक से च्युत होकर संसार भ्रमण करके राजगृही नगरी में विशाखभूति का पुत्र विश्वभूति नाम का क्षत्रिय हुआ । उस भव में उनकी एक कोटि घर्ष की आयु थी । उसमें एक हजार वर्ष की श्रमण पर्यायका पालन किया और यह प्रवर्त्त्या उन्होंने सम्भूतयति के पास ग्रहण की थी । एकदा पारण हेतु मथुरा नगरी में गोत्रासित' में प्रविष्ट होकर निदान किया । तथा वहाँ से सनिदान – अनालोचित - अप्रतिकांत मासक्षमण के अत में मर कर महाशुक्र देवलोक में उत्पन्न हुए ।
कथानकादव सेयः, तच्चेदम्
(ख) रायगिहे नगरे विस्सनंदी राया तस्स भाया विसाहभूति, सो य जुवराया, तस्स जुत्ररण्णो धारिणीए देवीए विस्सभूत्ती नाम पुत्तो जातो' रणोऽवि पुत्तो विसाहनं दित्ति ।
तर विस्तभूतिस्स वासकोडी आउ, तत्थ पुप्फकरंडकं नाम उज्जाणं, तत्थ सो विस्तभूती अंडरवरतो सच्छंदह पवियर, ततो जा सा विसाहनंदिस्त माया तीसे दासचेडीओ पुष्ककरंडए उज्जाणे पत्ताणि पुष्पाणिय आ (वि) णेंति, पेच्छति य विस्सभूति कीडतं, तासिं अमरिसो जाओ, ताहे साहति जहा एवं कुमारो ललइ, किं अम्ह रज्जेण वा बलेणवा ?, जइ विसाहनंदी न भुजइ एवंविह भोए, अह नामं चेव, रज्जं पुण जुवरन्नो पुत्तस्स जस्सेरिसं ललियं, सा तासि अंतिए सोउ देवी ईसाए कोरं पविट्ठा, जइ ताव रायाणए जीवंतए एसा अवस्था ? जाहे रायामतो भविस्सइ ताहे इत्थम्हे को गणेहित्ति ? राया गमेइ, सा पसायं न गिण्हइ, किं मे रज्जेण तुमे वत्ति ? पच्छातेण अमच्चस्स सिंह, ता मच्चोऽवितंगमेति, तहवि न ठाइ, ताहे सो अमच्चो भणइ रायं मा देवीए वयणातिक्कमो कीर, मामारेहिति, अप्पाणं राया भणति - को उवाओ होज्जा ? ण य अम्हं वंसे अन्नमि अतिगते उज्जाणे अण्णो अतीति तत्थ वसंतमासं ठिओ मासग्गेतु अच्छइ, अमच्ची भणइ – उवाओकज्जउ जहा अमुगो पच्चतराया ओट्टो, अणज्जंता पुरिसा कूडलेहे वर्णेतु, एवमेतेण कयकेण ते कूडलेहा रन्ना उवठविया, ता या जतं गिइ तं विस्सभ तिणा सुयं, ताहे भणति मए जीवमाणे तुब्भेकिं निग्गच्छह ? ताहे सो गओ, ताहे चेव इमो अइयओ, सो गओ तंपच्चतं जाव न किंचि पेच्छइ उड्डुमरेंतं, ताहे आहिंडित्ता जाहेरि कोइ अतिक्कइ ताहे पुणरवि पुष्ककरंडयं उज्जाणमागओ, तत्थ दारवाला दंडगहिअग्गहत्था भतिमा अईह सामी कि निमित्त एत्थ विसाहनंदी कुमारो रमइ, ततो एवं सोऊणं कुविओ विस्सभूति तेण नायं- कयकेण अहं निग्गच्छाविओत्ति, तत्थ कविट्ठलता अणेगफलभर समोसया, सा मुहारेण आया, ताहे तेहि कविट्ठ हि भूमी अच्छुया, ते भणाति एवं अहं तुज्भं सीसाणि पाडितो जइ अह महल्लपिउणो गोरवं न करेंतो, अहं ये छम्मेण नीणिओ तम्हा अलाहि भोगेहिं, तओ निग्गओ, भोगा अवमाणमूलत्ति अज्जसंभूयाणं अंतिए पञ्वइओ, तं पव्वइयं सोडताहे राया संतेउरपरियणो जुवराया य निग्गओ, ते तं खभावेति णेव तेसि सो पसत्ति गेण्हइ ततो बहूहिं छट्ठमा दिएहिं अप्पाण भावेमाणो विहरति, एवं सो विहरमाणो महुरनगरि गओ ।
ओय विसाहनन्दी कुमारो तत्थ महुराए पिउच्छाए रन्नो अग्गमहिसीए धया लद्वेल्लिया, तत्थ
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