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बधमान जीवन-कोश
भागवत के कथनानुसार चिरकाल तप करके वह स्थावर पुनः मरा और ब्रह्मलोक - स्वर्ग को प्राप्त हुआ । वहाँ वह दस सागर प्रमाण आयु वाला तथा अभिनव-पावस के समान अत्यन्त मनोहर देव हआ। जन्म के साथ में ही वहाँ होने वाले दिव्य आचरणों से प्रसाधित तथा सुर-सीमन्तिनियों । देवांगनाओं द्वारा आराधित हआ।
.१६ क संसार भ्रमण (क) छस्सुवि पारिवज्जं भमिओ तत्तो अ संसारे ।।
-आव० निगा० ४४३ उत्तरार्ध मलयटीका-+ + + एवं षट्स्वपि वारासु परिव्राजकत्वमधिकृत्य दिवमवाप्तवान्, 'भमिओ तत्तो
य संसारे' ततः ब्रह्मलोकाच्च्युत्वा भ्रांतः संसारे प्रभूतं कालमिति गाथार्थः। (ख) ब्रह्मलोकात्परिच्युत्य स बभ्राम बहून् भवान् । भवो ह्यनन्ती भवति स्वकर्मपरिणामतः ॥ ८५ ॥
–त्रिशलाका पर्व १० । सर्ग १ (ग. तओ वि चविऊण चउगइससारकन्तारं परिभमिओ।
-चउपन्न० पृ०६८ भगवान महावीर के जीव ने छः वार परिव्राजक दीक्षा ग्रहण करके देवलोक प्रात किया तथा तत्पश्चात ब्रह्मलोक से च्युत होकर प्रभूतकाल तक संसार भ्रमण किया ।
.१७ विश्वभूति क्षत्रिय के भव में (क) रायगिह विस्सनंदो विसाहभूईअ तस्स जुवराया। जुवरण्णो विस्सभूई विसाहनंदी अ इअरस्स ।। रायगिह विस्सभूई विसाहभूइसुअ खत्तिए कोडी। वाससहस्सं दिक्खा संभूअजइस्स पासम्मि ॥
-आव. निगा ४४४।४४५ मलयटीका-अक्षरार्थस्त्वभिधियते-राजगृहे नगरे विश्वनन्दिनाम राजा अभूत्, विशाखभूतिश्च तस्य युवराजः तस्य धारिणीदेव्या विश्वभूतिनाम पुत्र आसीत् , विशाखनन्दिश्चेतरस्य, राज्ञ इत्यर्थः, तत्थमधिकृतो मरोचिजीवः 'रायगिह विस्सभूइत्ति' राजगृहे नगरे विश्वभूतिर्नाम विशाखभूतिसुतः क्षत्रियोऽभवत् , तत्र च वर्षकोटी आयुष्कमासीत् , तस्मिंश्च भवे वर्षसहस्त्र दीक्षा-प्रत्रज्या कृता, सम्भूतयतेः पावें ॥ तत्र वगुत्तासिओ महुराए सनिआणो मासिएण भत्तण । महसुक्क उववन्नो तओ चुओ पोअणपुरम्मि ।।
- आव• निगा० ४४६ मलयटीका-पारणकप्रविष्टो गोत्रासितो मथुरायां निदानं चकार मृत्वा च सनिदानोनालोचित्ताप्रतिक्रांतः, अंते मासिकेन भक्तन महाशुक्र कल्पे उपपन्न उत्कृष्टस्थितिदेव इति ।
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