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वर्धमान जीवन-कोश (छ) दीक्षा माहेंद्रमभ्येत्य ततश्च युत्वा पुरातने । मन्दिराख्यपुरे शालङ्कायनस्य सुतोऽभवत् ।। मन्दिरायां जगत्ख्यातो भारद्वाजसमाह्वयः। त्रिदंडमंडितां दीक्षाभक्षणां च समाचरन् ।। ७६ ॥
_ -उत्तपु० सर्ग ७४ माहेन्द्र स्वर्ग से व्युत् होकर उसी मंदिर नामक नगर में शालकायनब्राह्मणी की मन्दिरा नाम की स्त्री भारद्वाज नाम का जगत्प्रशिद्ध पुत्र हुआ और वहां उसने त्रिदण्ड से सुशोभित अखंड दीक्षा का आचरण किया।
१३ क संसार भ्रमण
xxx परिव्राजकश्चाभवत् xxx।
-आव० निगा ४४२ । मलय टीका भारद्वाज ब्राह्मण के बाद भगवान महावीर के जीव ने संसार म्रमण किया।
.१४ माहेन्द्र कल्प देव भव में (क) xxx भारदाओ xxx
च माहिंन्द ॥ -आव० निगा ४४२ उत्तरार्ध । मलयटीका-xxx भारद्वाजो xxx मृत्वा च माहेन्द्र कल्पेजघन्योत्कृष्ट स्थितिर्देवो बभूवेति
गाथार्थः। ख) चतुश्चत्वारिंशत्पूर्वलक्षायुः सत्रिदंड्यभूत् ।। ८२ ।। मृत्वा माहेन्द्रकल्पेऽभूत् स सुरो मध्यमस्थितिः
- त्रिशलाका० पर्व १० । सर्ग १ । (ग) भारदाओ + + + मरिऊण माहिन्दे कप्पे मज्झिमट्ठिईओ देवो समुप्पण्णो।
चउप्पन्न० पृ० १७ भगवान सहावीर का जीव भारद्वाज भव की आयु पूर्ण करदे माहेन्द्र देवलोक में मध्यस्थिति वाले देव के . में उत्पन्न हुआ। (घ) तत्कुज्ञानजसंवेगादीक्षा त्रिदंडमण्डिताम् । गृहीत्वा तपसा बद्ध्वा देवायुः स मृतिययौ ।। १२७ ।। तत्फलेन बभूवासौ दिवि माहेन्द्रनामनि । धृत्वा सप्ताब्धिगानायुः स्वतपोऽर्जितशर्मभाक् ॥१२८॥
-वीरच० अधि २ (च) त्रिदंडमंडितां दीक्षाभक्षणां च समाचरन् ॥ ७६ ॥ सप्ताब्युपमितायुः सन् कल्पे माहेन्द्रनामनि।
----उत्तपु० पर्व ७४ (छ) घत्ता-पुणरवि विक्खायउ हुउ परिवायउ चिरु तउ करेवि मरेविणु । माहिंदि मणोहरि मणिमय - सुरहरे हुवउ अमरु जाए विणु ॥
-वड ढमाणच० संधि-२ कड । १६
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