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वर्धमान जीवन - कोश
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मित्र पुनः पूर्वभव के अभ्यास से पूर्व भववाली परिव्राजक दीक्षा को लेकर और शारीरिक क्लेशों को अपनी आयु के क्षय होने पर मरा और उस अज्ञान तप से माहेन्द्र नाम के स्वर्ग में अपने तपानुसार आयु, और देवी आदि से मंडित देव उत्पन्न हुआ ।
क संसार भ्रमण
ईशान देवलोक के बाद भगवान महावीर के जीव ने संसार भ्रमण किया था ।
भारद्वाज परिव्राजक भव में
सेअवि भारद्दाओ चोआलीसं च माहिन्दे |
- आव० निगा ४४२ उत्तरार्ध
[ देखो० आव० निगा ४४३ । उत्तराधं ]
मलयटीका - XXX सनत्कुमाराच्च्युतः श्वेताम्ब्यां नगर्यां भारद्वाजो नाम ब्राह्मण उत्पन्न इति । तत्र च चतुश्चत्वारिंशत् पूर्व शतसहस्राणि जीवितमासीत्, परिव्राजकश्चाभवत् × × ×/ च्युत्वा च श्वेतवीपुर्यां भारद्वाजोऽभवद्विजः । चतुश्चत्वारिंशत्पूर्वलक्षायुः स त्रिदंड्यभूत् ॥ ८२ ॥ - त्रिशलोका० पर्व १० / सर्ग १ पुण कुमाओ विऊण सेयवियाए नयरीए भारद्दाओ णाम बम्भणो समुप्पण्णो । तत्थ य चोयालीसं पुव्वलक्खे आउयमणुवा लिऊण अंते य परिवायगत्तणमणुवालिऊण पंचत्तमुवगओ ।
- चउप्पन० पृ० ६७
भगवान महावीर का जीव सनत्कुमार देवलोक से चवकर श्वेताम्ब्या नगरी में भारद्वाज नामक ब्राह्मण के रूप न्म लिया । परिव्राजक दीक्षा ग्रहण की और चौवालिस लाख पूर्व की आयु पूर्ण करके माहेन्द्र देवलोक में हुआ ।
अह प्राक्तने रम्ये पुरे मन्दिरनामके । सालंकायनविप्रोऽस्ति मन्दिरा तस्य वल्लभा ।। १२५ ।। तयोर्द्विजचरो देवश्च्युत्त्रा माहेन्द्रत स तुक् । भारद्वाजाह्वयो जातः कुशास्त्राभ्या सतत्परः || १२६ || - वीरच० अधि २
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सत्यवंतपुरे पर-मण-हारण कुसुमपत्त कुस -पत्ती-धारणु । नियमणि निकाइय नारायण । आसि विप्पचरु सालंकायणु । मंदिर-णाम पियाहु एयहो । गुण-मंदिरु मुणियायमभेयहो । हँगो एव तरुह संभूवउ मुह-जिय- अंभोरुहु | जगणे भासि भारद्दायउ सुरसरि जल पक्खालिय- कायउ घता- - पुणरवि विक्खायउ हुउ परिवायउ x x x
- वडमाणच संधि २Iकड १६
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