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वर्धमान जीवन कोष
उन दोनों के वहाँ वह ( सनत्कुमार देव चयकर ) अग्निमित्र नाम के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ । वह प्रतीत होता था मानो रति का दूत ही हो। वह द्विज श्रेष्ठ शास्त्रों का रसिक था। उसके पिता ( गौतम ) ने उस कहा कि - हे अग्निमित्र, लोक में अपना तेज प्रकाशित करो ।
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वह अग्निमित्र घर में निवास करते हुए भी रति भावना का निवारण कर नारायण-शासन के मत को धा कर मन ( की वृत्तियों ) के प्रसार को जीत करा, तप ग्रहण कर, चूला ( शिखा जटा ) सहित त्रिदंड ( त्रिशुल धारण कर, परिव्राजक रूप में भ्रमण कर दीर्घकाल तक मिथ्यात्व में रमा ।
११ क संसारभ्रमण
ईशान देवलोक के बाद भगवान महावीर के जीव ने संसार भ्रमण किया था ।
. १२ सनत्कुमार देव - या माहेद्रकल्प देव भव में (क) +++ अग्गिभूई +++ सणकुमारम्मि । - आव निगा ४४२ पूर्वार्ध
मटीका - xxx मृत्वा 'सणकुमारंमि' त्ति सनत्कुमारे कल्पे विमध्य स्थितिर्देवः समुत्पन्न इति । (ख) षट्पंचाशत्पूर्वलक्षायुकः सोऽपि त्रिदंड्यभूत् । मृत्वा सनत्कुमारे च मध्यमायुः सुरोऽभवत् ॥ ८१ । - त्रिशलाका० पर्व १० । सर्ग
(ग) अग्गिभूई णाम बंभणो XXX मरिऊण सणकुमारे मज्झिमठिईओ देवो समुप्पण्णो ।
- चउप्पन० पृ० १
भगवान महावीर के जीव ने अग्निभूति ब्राह्मण का भव क्षय करके सनत्कुमार देवलोक में विमध्य स्थिति के रूप में समुत्पन्न हुआ ।
- ( देखो० आव० निगा० ४४३ उत्तरार्ध
(घ) पुनः पूर्वभवाभ्यासान्नीत्वा दीक्षां पुरातनीम् । विधाय वपुष क्लेशं मृतः स स्वायुषःक्षये ॥ १२३ तेनाज्ञतपसा जज्ञ कल्पे माहेन्द्रसंज्ञके । गीर्वाणः स्वतपोजातायुः श्रीदेव्यादिमण्डितः ।। १२४ - वीरच० अधि २
(घ) परिवायय-रूवेण भमेविणु भूरिकाल मिच्छत्ति रमेविणु । मरि माहिंद-सग्गि संजायउ सत्त जलहि-सभाउ सुछायउ afe fun सुहुं देवीहि रमेविणु चविउ सुपुण्णक्ख पावेविणु ।
(छ) दीक्षां माहेन्द्रमभ्येत्य ततश्च्युत्वा पुरातने ।
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- वडढमाणच० संधि २ । कड १६
- उत्तपु० पर्व ७४ / श्लो ७८/ पूर्वार्ध
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