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वर्धमान जीवन - कोश
मृत्वेशाने मध्यमायुः सोऽभूद वस्ततश्च्युतः । मन्दिरे सन्निवेशेऽभूदग्निभूतिरिति द्विजः ।। ८० ।।
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षट्पंचाशत्पूर्वलक्षायुष्कः सोऽपि त्रिदंड्यभूत् ॥ - त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग १
ओ य चइऊण मंदिरे नगरे अग्गिभूईणाम बंभणो संवृत्त । तत्थ य छपंचासे पुव्वलक्खे आउयमणुपा लिऊण अंते परिवायगत्तणेणं ।
- चउप्पन्न० पृ० ६७
भगवान महावीर के जीव ने ईशान देवलोक से चक्कर मंदिर सन्निवेश में अग्निभूति नामक ब्राह्मण के रूप में लिया। परिव्राजक दीक्षा ली तथा छप्पन्न लाख पूर्व की आयु का भोग किया ।
यथास्मिन् भारते रम्ये मन्दिराख्येपुरे वरे । विप्रो गौतमनामास्य कौशिकीं ब्राह्मणी प्रिया ।। १२१ ॥ तयोर्देवो दिवश्च्युत्वा सोऽग्निमित्राभिधोऽजनिः । तनुद्भवो महामिध्यादृष्टिदुःश्रुतिपारगः ।। १२२ ।। - वीरच० अधि० २
आयुषोऽन्ते ततश्च्युत्वा विषयेऽस्मिन् पुरेऽभवत् ॥ ७६ ॥ मन्दिराख्येऽग्निमित्राख्यो गौतमस्य तनूद्भवः । कौशिक्यां दुःश्रुतेः पारं गत्वागत्य पुरातनीम् ॥ ७७ ॥ - उत्तपु०पर्व ७४
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इह णिव सइ सुन्दर मंदिरपुरु कामिणि - यण पय
सहिय णेउरु । मंदरग्ग धय पंति पिहिय - रवि तहिं बलि विहिणा संपीणिय हवि । गोत्तमु णामें दियवरु हुवउ परियाणियणिय समय - सरूवउ |
तहो कोसिय कामिणि - जण - मोहण तणु लायण्ण - वण्ण - संखोइण ॥
बत्ता - एयहँ सुउ हूवउ णं रइ दूवउ दियवर - सत्थ - रसिल्लउ |
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सोभासि जगह पयासिउ अग्निमित्तु - इल्लउ || ३५ ||
गिह वासणि रह- भाउ णिवारिवि णारायण सासण मए धारेवि ।
मणु पसरंतु जिणेवि तड लेविणु चूलासहिउ तिर्दहु धारेविणु ।
परिवायय - रूवेण भमेविणु भूरिकाल मिच्छत्ति रमेविणु ॥
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- वडमाणच० संधि २ । कड १६
इस संसार में मन्दिरपुर नाम का एक सुन्दर नगर है । जहाँ कामिनीजनों के पैरों के नूपुर शब्दायमान है, जहाँ मन्दिय के अग्रभाग में लगी हुई ध्वज पंक्तियाँ रवि को ढंक देती थी । वहाँ बलि-विधान से होम किया [ था। वहाँ गौतम नामक एक द्विन श्रेष्ठ हुआ— जो अपने मत के स्वरूप का जानकार था । शरीर के लावण्य दिर्य से जगत् को मोह लेने वाली उसकी कौशिको नाम की कामिनी थी ।
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