________________
वर्धमान जीवन-कोश
३६ इसी भरत क्षेत्र में श्वेतिका नाम के उतम नगर में अग्निभूति नाम का ब्राह्मण रहता था। उसकी ब्राह्मणी का नाम गौतमी था। स्वर्ग से चयकर वह देव उन दोनों के अग्निसह नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। वह पूर्वकृत मिथ्यात्व कम के उदय से अपने ही पूर्व प्रचारित एकांत मत के शास्त्रों का ज्ञाता हुआ और पुनः पुरातन कम से परिव्राजक दीक्षा से दीक्षित होकर और पूर्व के समान काल व्यतीत कर आयु समाप्त किया। (च) भुक्तत्वा ततः समागत्य भरते सूतिकाह्वये। पुरेऽग्निभूतेगौ तम्यामभूदग्निसहः सुतः ॥ ७४ ॥ परिव्राजकदीक्षाया नीत्वा कालं स पूर्ववत् x x x ।
-उत्तपु० पर्व ७४ (छ) धत्ता-कण - निवडिय - खयरिहे सोइय णयरिहे अग्गिभूइ दिउहुन्तउ ।
गोत्तम - पिय · जुत्तउ पत्त - पहुत्तउ छक्कम्मइँ माणंतउ ।। ३४ ॥ एयहँ दोहिंमि सुहु भुजंतहँ सज्जणाई विगएँ रंजतहँ । आउक्खइँ सुर-वासु मुएप्पिणु सुर-सुन्दरिहिँ समाणु रमेप्पिण । पूसमित्त - चरु भयउ धणंधउ णिय-गुण-जियराणंदिय बंधउ । भणिउ अग्गिसिहु सोसइ - जणणे दुज्जण - भणिय - वयण - परिहणणे । पुणु परिवायय - तउ विरएविणु चिरु - कालें पंचत्त लहेविणु ।
-वड्ढमाणच० संधि २ वह ( मरीचि का जीव ) ईशान देव स्वर्ग से कण के समान पतित हआ। श्वेता नामकी नगरी में अग्निभति नाम का द्विज रहता था, जो अपनी गौतमी नाम की प्रिया से युक्त षट कर्मों को मानता हुआ प्रभुता को प्राप्त था।
( जब ) ये दोनों ( अग्निभूति और गौतमी) सुख - भोग कर रहे थे तथा अपने विनय गुण से सज्जनों का मनोरंजन कर रहे थे तभी उन के यहाँ आयु के क्षय होने पर स्वर्गीवास छोड़ कर सुर-सुन्दरियों के साथ रमण करने घाला वह (पुष्यमित्र का जीव ) ईशान देव स्वर्ग से चयकर अपने गुण समूह द्वारा बन्धुगणों को आनन्दित करने वाले पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। अपने पिता (अग्निभूति ) के द्वारा वह 'अग्निशिख' इस नाम से पुकारा जाता था। 'अग्निशिख दुर्जनों को कहे गये वचनों का खण्डन करने वाला था। पुनः वह चिरकाल तक परिव्राजक तप कर पंचत्व को प्राप्त हुआ।
•१० ईशान कल्प देव~या सानत्कुमार देव भव में(क. xxx
चेव ईसाणे ॥
-आव० निगा ४४१ का शेषांश मलय टीका-xxx अग्निद्योतो ब्राह्मणः सञ्जातः, तत्र चतुःषष्टिपूर्वशतसहस्राण्यायुष्कमासीत्, परित्राट् संञ्जातो, मृत्वा चेशाने देवोऽजघन्योत्कृष्टस्थितिः संवृत इति गाथार्थः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org