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वर्धमान जीवन - कोश
पुष्पमित्र चिरकाल तक तप करता रहा। फिर मर कर २५ तत्त्वों की भावना भाकर ईशान स्वर्ग में पुष्पमाला से अलंकृत देहधारी देव हुआ । वहाँ उसकी आयु दो सागर प्रमाण थी । वहाँ वह अप्सराओं द्वारा रचाये गये सुहावने नृत्यों में मन लगाने लगा ।
०८ क संसार भ्रमण
छवि परिव्वज्जं भभिओ तत्तो अ संसारे ।
- आव० निगा ४४३ उत्तराधं मलयटीका - एवं षट्स्वपि वारासु परिव्राजक्त्वमधिकृत्य दिवमवाप्तवान् 'भमिओ तत्तो य संसारे'
XXX I
छ परिव्राजक भवों के बाद देवलोक में उत्पन्न होकर भगवान महावीर के जीव ने संसार भ्रमण किया था । इस गाथा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पुष्पमित्र ब्राह्मण के भव के बाद सौधर्म देवलोक से च्यवन करके भगवान के जीव ने 'संसार - भ्रमण' किया ।
०६ अग्निद्योत परिव्राजक अथवा अग्निसह (अग्निशिख) ब्राह्मण भव में
(क) चेइअ अग्गिज्जोओ चोवट्ठी चेव ईसाणे ॥
- आव० निगा ४४१ उत्तरार्ध
मलयटीका - 'चेइय अग्गिज्जोतो चोयट्ठीसाणकप्पं मि' ( चेव ईसा ) त्ति सौधर्माच्च्युतः चैत्यसन्निवेशे अग्निद्योतो ब्राह्मणः सन्जातः । तत्र चतुःषष्टिपूर्व शतसहस्राण्यायुष्कमासीत् ।
परिव्राट् सब्जातो |
(ख) च्युत्वा चैत्ये सन्निवेशेऽग्न्युद्योतः स द्विजोऽभवत् । पूर्वलक्षचतुः षष्ट्यायुष्कः प्राग्वस्त्रिदण्ड्यभूत् ॥७६॥ - त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग १ (ग) तओ य चइऊण चेइए सण्णिवेसे अग्गिज्जोओ णाम बंभणो समुप्पण्णो । तत्थ य चडसट्ठि पुत्र्वलक्खे आउयमण वालिऊण अन्ते परिव्वायओ होऊण मओ ।
- चउप्पन्न० पृ० ६७
भगवान महावीर का जीव सौधर्म देवलोक से चव करके चैत्य सन्निवेश में अग्निद्योत ब्राह्मण के रूप में उत्पन्न हुए। वहाँ चौसठ लाख पूर्व की आयु थी ।
(घ) अथेह भारते क्षेत्र े श्वेतिकाख्ये पुरे शुभे ब्राह्मणोऽख्यग्निभूताख्यो ब्राह्मणी (तस्य) गौतमी ॥ ११७ ॥ स्वर्गाच्युत्वा तयोरासीत्सोऽमरः कर्मपाकतः । पुत्रोऽग्निसहनामा निज्जैकान्तमतशास्त्रवित् ॥ ११८ ॥ प्राक्कर्मणा भूत्वा परिव्राजकदीक्षितः । कालं स पूर्ववन्नीत्वा स्वायुषोऽन्ते
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मृतिं व्यगात् ॥ ११६ ॥ - वीरच० अधि २
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