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वर्धमान जीवन-कोश उसने वही पहला परिव्राजक का वेष धारण कर प्रकृति आदि के द्वारा निरूपित पचीस मिथ्या तत्त्व मूर्ख मनुष्यों की बुद्धि में प्राप्त कराये अर्थात् मूर्ख मनुष्यों को पचीस तत्त्वों का उपदेश दिया।
७ क संसार भ्रमण xxx परिव्राजकदर्शने च प्रव्रज्यां गृहीत्वा तां पालयित्वा कियन्तमपि कालं स्थित्वा x x x ।
-आव• निगा ४४१मलयटीका परिव्राजक भवमें प्रव्रज्या ग्रहणकर-पालन कर संसार में कितनेककाल भ्रमण किया था
०८ सौधम कल्प देव अथवा ईशान कल्पदेव भव में क) xxx
च सोहम्मे । मलयटीका- xxx पुप्पमित्रो xxx कियन्तमपि कालं स्थित्वा सौधर्मे कल्पेऽजघन्योत्कृष्टस्थितिः समुत्पन्न इति।
- आव० निगा ४४१ का अंश भगवान् महावीर का जीष पुष्पमित्र ब्राह्मणभव की आयु क्षय करके सौधर्म कल्पदेव लोक में मध्यम स्थिति के आयुष्क देव रूप में समुत्पन्न हुमा । (ख) भूत्वा त्रिदण्डिकः पूर्वलक्षद्वासप्ततिप्रमम्। अतीत्यायुः स सौधर्मे सुरोऽभून्मध्यमस्थितिः ।।
-त्रिशलाका• पर्व १०/सर्ग १ । श्लो० ७८ । (ग) पञ्चविंशतिदुस्तत्त्वान् दुधियामभिमानयन्। बद्धवा मंदकषायेण देवायुः सोऽभवद् व्यसुः ॥११५॥ तेन सौधर्मकल्पेभूदेकसागरजीवितः। स देवः स्वतपोयोग्यसुखलक्ष्म्यादिमंडितः ॥११६॥
-वीरच० अधि २ (घ) निष्कषायतया बवा देवायुरभवन्सुरः । सौधर्मकल्पे तत्सौख्यमेकवाध्युपमायुषा ॥ ७३ ॥
-उत्तपु० पर्व ७४ पुष्पमित्र प्रकृति आदि पूर्व प्ररूपित पचीस कुत्तत्त्वों को कुबुद्धिजनों के लिए स्वीकार करता हुआ मन्द कषाय के योग से देवायु को बाँध कर मरा और सौधर्म कल्प में एक सागरोपम की आयु का धारक एवं अपने तप के योग्य सुख और लक्ष्मी आदि से मंडित देव उत्पन्न हुआ। (च) तउचिरू कालु करेइ मरेविणु पंचवीस तच्चइँ भावेविणु ।
सुरु ईसाणे-सग्गि संजायउ कुसुम-माल-समलंकिय-कायउ । वे-सायर-संखाउसु सुहयण अच्छर-यण कय-गट्ट-णिहिय-मण ।
-वड्ढमाणच० संधि २
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