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वधमान जीवन-कोष (ख) तिविह-भुवण भवणंगे कयंतें ।
कोसलपुरि कविलहो भूदेवहो परिणिवसंतहो चवल - सहावहो । जण्णसेण - कंता - अणुरत्तहो जण्णोइय - परिभूसिय - गत्तहो । तहो तणुसहु सस्थत्थ - वियक्खणु हुउ बह्यणु सव्वंग-सलक्खणु । जडिलु भणिउ जलणुव दिप्पंतउ मिच्छादिहिहे सहुँ जपंतउ ।
-वड्डमाणच० संधि २ तीन होकों में एक अद्वितीय भवन के समान कोशला नाम की नगरी थी, जहाँ चपल स्वभावी कपिल भूदेव नामक ब्राह्मण निवास करता था। उसकी यज्ञादिक से परिभूषित गात्रवाली एवं अनुरागिणी यज्ञसेना नाम की कान्ता थी।। उनके यहाँ शास्त्रों एवं उनके अर्थों में विलक्षण विद्वान् तथा सर्वागीण शारीरिक लक्षणों से युक्त जटिल नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ, जो अग्नि शिखा के समान दीप्त था। तथा जो मिथ्यादृष्टियों के साथ ही वार्तालाप करता था। (ग) प्रच्युत्यागत्य साकेते कपिलब्राह्मणप्रभोः काल्याश्च तनयो जज्ञ जटिलो नाम वेदवित् ॥ ६८ ।। परिव्राजकमार्गस्थस्तन्मार्ग संप्रकाशयन् । पूर्ववत्सुचिरं x x x ॥६६ ।।
-उत्तपु० पर्व ७४ ब्रह्मस्वर्ग से च्युत हुआ और अयोध्या नगरी में कपिल नामक ब्राह्मण की काली नाम की स्त्री से वेदों को जानने वाला जटिल नाम का पुत्र हआ। परिव्राजक के मत में स्थित होकर उसने पहले की तरह चिरकाल तक उसीके मार्ग का उपदेश दिया।
.०५ क चतुर्गति संसारभ्रमण (क) x x x संसारो॥ मलयटीका-'संसार' त्ति तिर्यग्नरनारकामरभवानुभूतिलक्षणे संसारे पर्यटित इति गाथार्थः ।।
-आव० निगा ४४० का अंश (ख) सोऽन्ते त्रिदंडी भूत्वा च मृत्वा भ्रान्त्वा बहून् भवान् ||
-त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग १/श्लो ७७/ पूर्वार्ध कोल्लाक सन्निवेश में कौशिक ब्राह्मण भव के पश्चात् भगवान् महावीर के जीव ने चतुर्गति रूप संसार का भ्रमण किया।
.०६ ईशान स्वर्ग देव अथवा सौधर्म स्वर्ग देव भव में
___ (क) आवश्यक नियुक्ति में इस भवका वर्णन नहीं है। चतुर्गति रूप संसार का भ्रमण करते किस देव भवको प्राप्त किया-इसका उल्लेख नहीं है।
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