________________
३५
बधमान जीवन-कोश (ख) त्रिशलाका पुरुष चरित्र में भी इस भव का वर्णन नहीं है । चतुर्गतिरूप संसार का भ्रमण करते किस देवभव को प्राप्त किया-इसका उल्लेख नहीं है ।
१ सौधर्म स्वर्ग का देव भव में-(श्वे) (ग) को सिओणाम बम्भणत्तणेण x x x मरिऊण अजहण्णुक्कोसटिइओ सोहम्मे कप्पे समुप्पण्णो ।।
-चउप्पन्न पृ.६७ कौशिक परिव्राजक मरकर सौधर्म फल्प में अजघन्य-अनुत्कृष्ट स्थिति वाला देव हुआ।
२ सौधर्म स्वर्ग का देव भव में ( दिग्०) (क) पूर्ववत्सुचिरं लोके मृत्वा स्वस्यायुषः क्षये । तत्कष्टादमरो जज्ञ कल्पे सौधर्मनामनि ॥ ११० ॥ द्विसागरोपमायुष्कः स्वल्पर्धिसुखसंयुतः । अहो न निःफलं जातु कुधियां कुतपो भुवि ॥ १११ ॥
-वीरवर्ध०-अधि २ (ख) — परिव्राजकमार्गस्थस्तन्मार्ग संप्रकाशयन् । पूर्ववरसुचिरं मृत्वा सौधर्मेऽभूत्सुरः पुनः ।। ६६ ।।
-उत्तपु० पर्व ७४ ग) भयव-दिक्ख गेव्हेविणु काले परिपालेविणु मुउ असरालें । घत्ता-हुउ सुरु सोहम्म मणिमय-हम्मइँ वे-सायर-जीविय-धरु । अमियज्जुइ समण्णिउ सुर-यण-मण्णिउ सुन्दरु उणणय-कुन्धरु ।।
-वड्ढमाणच० संधि २ अन्त समय में बटिल ने भगवती दीक्षा ग्रहण कर उसका पालन कर कष्ट पूर्वक मरा ।
पूर्वभव के समान इसभव में भी वह चिरकाल तक अपने मत का प्रचार करता और उसे पालन करता हमा आयु के क्षय हो जाने पर मरकर उस अज्ञान तप के कष्ट-सहन के प्रभाव से पुन: सौधर्म नामक कल्प में देव उत्पन्न हुआ। वहां वह दो सागरोपम की आयुका धारक और अल्प ऋद्धि से संयुक्त हुआ। अही। कुबुद्धियों का कुतप भी संसार में कभी निष्फल नहीं होता ।
०७ पुष्यमित्रपरिव्राजक अथवा पुष्पमित्र ब्राह्मण भव में (क) मलय टीका-संसारे क्रियन्तभषि कालमटित्वा स्थूणायां नगर्या जात इति, अमुमेवार्थ 'थूणाये
त्यादिना प्रतिपादयतिथूणाई पूममित्तो आउ बावत्तरि च सोहम्मे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org