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वर्धमान जीवन-कोश भूतेभ्यश्चेतनाऽप्येवं जीवधर्मतया पृथक् । परलोकगतिस्तत्स्याज्जातिस्मृत्यादितोऽपि च ।।१५४॥ इत्थं प्रबुद्धो मेतार्यः समीपे स्वामिपादयोः । शिष्यत्रिशत्या सहितः परिव्रज्यामुपाददे ।।१५५।।
-त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग ५ तत्पश्चात् मेतार्य नामक द्विज भगवान् के पास आया। उसे देखकर भगवान बोले-तुम्हें ऐसा संशय है"भवांतर में प्राप्त होने योग्य परलोक नहीं है क्योंकि चिदात्मा रूप जीव का स्वरूप सवभूतों के एक संदेह रूप हैउन भूत का अभाव होने के कारण-अलग अलग हो जाने से जीव का भी अभाव होता है तो फिर परलोक कैसे हो सकता है। परन्तु यह मिथ्या है। जीव की स्थिति सर्व भूतों से अलग है क्योंकि सर्वभूतों के एकत्रित होने पर भी उनमें से कोई चेतना उत्पन्न नहीं होती। इससे चेतना जो जीव का धर्म है-वह भूत से अलग है वह चेतनावाला जोव परलोक में जाता है और वहाँ भी उससे जाति स्मरण ज्ञान आदि से पूर्वभव का स्मरण होता है।
इस प्रकार भगवान् की वाणी से प्रतिबोधित हुआ। फलस्वरूप तीन सौ शिष्यों के साथ भगवान के पास दीक्षा ग्रहण की.२ मेतार्य गणधर के माता-पिता के नाम (क) तुंगिणिदेसुप्पण्णो मेयज्जो जयइ गणहरो दसमो। वारुणदेवीए सुओ दत्तस्स विसटिवरिसाऊ॥
-धर्मो• पृ० २२७ (ख) वत्सदेशे तुंगिकाऽऽख्ये सन्निवेशे द्विजन्मनः । दत्तस्य सूनुर्मेतार्यों वरूणाकुक्षिभूरभूत् ।।५।।
–त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग ५ मेतार्य गणधर का जन्म स्थान वत्सदेश में तुंगिकसन्निवेश था। बासठ वर्ष की आयु थी। पिता का नाम दत्त .. व माता का नाम वरुणादेवी था। .३ मेतार्य गणधर के संशय दशमस्य परलोके संशयः, सत्याप्यात्मनि परलोको-भवान्तरलक्षणः, किमस्ति किंवा नास्तिति ।
-अव० निगा ५६६/टीका मेतार्य गणधर के परलोक के विषय में संशय था। परलोक है या नहीं .४ मेतार्य गणधर का जन्मनक्षत्र (जन्म नक्षत्र) मेतार्यस्य अश्विनी x x x ..
-आब• निगा ६४६।टीका मेतार्य का जन्म-नक्षत्र-अश्विनी था। मेतार्य गणधर का गोत्र कोडिन्नदुगं च गुत्ताई
-आव० निगा ६४६ मलय टीका x x x कौन्डिन्यौ मेतार्य: प्रभासश्च मेतार्य गणधर का गोत्र कौन्डिन्य था।
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