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वर्धमान जीवन-कोश छिन्नंमि संसयंमी जाइजरामरणविमुक्केण । सो समणो पव्वइओ तीहिं उ सह खंडियसए हिं॥
-आव० निगा ६३० से ६३३ मलय टीका-व्याख्यापूर्ववत् (ख) अथाऽऽगादचलभ्राता प्रभु प्रभुरपि स्फुटम् । ऊचे तवाचलभ्रातः ! संदेहः पुण्यपापयोः ॥१४७॥
मा कृथाः संशयं तत्र यत्फलं पुण्यपापयो । प्रत्यक्षं दृश्यते लोके तथैव व्वहारतः ॥१४॥ दीर्घमायुः श्रियो रूपमारोग्यं जन्म सत्कुले । इत्यादि पुण्यस्यफलं विपरीतं तु पाप्मनः ॥१४॥ इत्थं भगवताच्छिन्नसंशयः समुपाददे। प्रव्रज्यामचलभ्राता त्रिभिः शिष्यशतःसह । १५०॥
-त्रिशलाका० पर्व १०सर्ग ५ तत्पश्चात् अचलभाता भगवान् के पास आया। भगवान् ने उसे स्फुट रूप से कहा-हे अचलभ्राता ! तुमको पूण्य और पाप के विषय में संदेह है। परन्तु तुम्हें उसमें किंचित् भी संदेह नहीं करना चाहिए। कोंकि इस लोक में पुण्य-पाप का फल प्रत्यक्ष जाना जाता है। उसी प्रकार व्यवहार से भी सिद्ध होता है।
दीर्घआयुष्य, लक्ष्मी, रूप, आरोग्य और सत्कुल में जन्म-ये पुण्य के फल हैं। और इसके विपरीत पाप के फल है।
इस प्रकार भगवान् की वाणी से अचलभाता का संशय नष्ट हो गया । फलस्वरूप ३०० शिष्यों के साथ अचलभाता ने भगवान् के पास दीक्षा ग्रहण की। .. अचलभ्राता-के माता-पिता के नाम (क) नंदा-वसूण तणओ गणहारी जयइ अयलग(भा) यत्ति। बावत्तरिवरिसाऊ कोसलदेसुब्भवो नवमो ।
-धर्मो० पृ० २२७ (ख) अभूच्च कोशलापुर्या वसुनाम्नो द्विजन्मनः। सूनुर्नाम्नाऽचलभ्राता नन्दाकुक्षिसमुद्भवः ।।५।।
–त्रिशलाका० पर्व १०सर्ग ५ अचलभाता के माता-पिता का नाम क्रमशः नंदा और वसु था। कोशल देश-जन्म स्थान था। बहत्तर वर्ष की आयु थी।
अचलभ्राता गणधर के शरीर का संहनन-संस्थान वज्जरिसहसंघयणा समचरंसा य संठाणे ॥
-आव० निगा ६५६ मलय टीका-सर्व एव गणधग x x x तथा वर्षभसंहननाः समचतुरस्राश्चसंस्थाने-संस्थानविषये।
अचलभ्राता का दैहिक गठन वज्र-ऋषमनाराच संहनन तथा समचतुरस्र संस्थान था। .४ अचलभ्राता गणधर की आयु
थेरेणं अयलमाया बावत्तरि वासाई सम्वाउयं पालइत्ता सिद्धे युद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुर्ड सव्वदक्खप्पहीणे।
-सम० सम ७२ सू३
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