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बधमान जीवन कोश
आने से उसमें से कुछ भी भवांकुर नहीं होता है। परन्तु यह आपका विचार खोटा और अघटित है। क्योंकि इस संसार में जो मनुष्य मृदुना और मरननादि मनुष्य का आयु बांधना है। यह करने से मनुष्य होता है परन्तु जो मायादि की रचना करता वै वह यहां पत्रु रूप में रहता है I वह मनुष्य भविष्यत् में पशु होता है। इस कारण जीव भी पृथक-पृथक गति में उत्पत्ति कर्म के आधीन है और इसी के कारण प्राणियों में विविधता दिखाई देती है। फलस्वरूप कारण के मिलने से ही कार्य होता है ऐसा कहना भी असंगत है। क्योंकि श्रृंग आदि में से शार निकलते हैं। ऐसी भगवान् की वाणी सुनकर सुधर्मा पांच सौ शिष्यों के साथ प्रभु के चरण कमलों में दीक्षा ग्रहण की।
सुधमा गणधर के माता-पिता के नाम
(क) भद्दिल प्रम्मिल तणओ गणहारी नव पंचम सुहम्मो ॥ कोल्लाग सन्निवेसे उप्पण्णी वरिस सय-जीओ
- धर्मो० ० २२७
सुर्मा गणधर के माता का नाम भला व पिता का नाम भ्रम्मिल था । कोलाग सन्निवेश (मगध ) जन्मस्थान था । १०० वर्ष की आयु थी ।
(ख) कोला के अनुमित्रो धम्मिल्लक्ष्य द्विजस्तयोः पुत्रौ व्यक्तः सुधर्मा च वारुणीभद्रिलाभवौ ।। ५१ ।। - त्रिशलाका पर्व २० / सर्ग ५
कोल्लाक ग्राम में श्रम्मिल नाम का ब्राह्मण रहता था । उसके महिला नाम की स्त्री थी । उसके सुधर्मा
नामक एक पुत्र था।
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(ग) वसुभुईचणमित्तां धम्मिल धणदेव मारिएधेय देवे वसू अदत्तं बलं अ पिअरो गणहराणं ॥ आय निगा / ६४७
सूम के पिता का नाम धम्मिल और माता का नाम भहिला था ।
आर्य मी का गोत्र
(क) सम भगव महावोरे कामवगात्तणं सरणम्म णं भगवओ महावीरस्स कासवगोत्तम्स अजमेरे देवासी अग्गिवेसायणसगांत कप्प० सू २०५ काश्यप गोत्री श्रमण भगवान महावीर के अग्नि वैशायन गांधी
श्रमण भगवान् महावीर काश्यप गोत्री थे। स्थविर आय सुधर्मा नामक अंतवासी शिष्य थे ।
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(ख) तिन्निय गोयमगत्ता भाग्दा अग्गिस व. सिट्टा कासवगांअम हारिअ कोडिन्नदुगंच गुन्ताई ॥
सुषमा अनि वैश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण वंश में उत्पन्न हुए थे ।
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• सुधर्मा के जन्म के समय --नक्षत्र का योग
जा कत्तिय साईसवणो हत्युत्तरा महाओ । रोहिणि उत्तरसोदा मिगसिर तह अम्मिणी पुरसो ||
-आय निगा
सुधमा के जन्म के समय उत्तर-फाल्गुनी नक्षत्र का योग था ।
- आव० निगा ६४६
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