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वर्धमान जीवन - कोश
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इस मगध देश में गोबर नामक ग्राम था । उस ग्राम में वसुभूति ब्राह्मण रहता था । जिसका गौतम गोत्र था। उसकी पत्नी का नाम पृथिवी था । उसके इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति - तीन पुत्र थे । आगे जाकर अग्निभूति भगवान् महावीर के द्वितीय गणधर हुए ।
(ख) पुहवी-वसुभूइ-सुओ गणहारी जयइ चहत्तवास ऊ गोव्वरगामुभवो
(ग) वसुभूई x x x
अभिभूइ त्ति । बीओ ॥
- धर्मोप० पृ० २२७
- आव० निगा ६४७
टीका- आद्यानां त्रयाणां गणभृतां पिता व त्रुतिः ।
पुंछवी x X × । मलय टीका - आधानां त्रयाणां गणभृतां माता पृथिवी ।
अग्निभूति की माता का नाम पृथिवी व पिता का नाम वसुभूति था । चहत्तर वर्ष की आयु थी ।
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- आव० निगा ६४८
•४ अग्निभूति गणधर - द्वितीय गौतम से संबोधित :
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स दोच्चे अंतेवासी अग्गिभूई नामं अणगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुर सेहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी x x x । दोच्चे गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव तच्चे गोयमे वायुभूति अणगारे तेणेव उवागच्छइ । × × × - भग० श ३ / उ १ / सू४/८
जन्मस्थान गोबर ग्राम ( मगध ) था ।
उम काल उस समय मोका नगरी में भ्रमण भगवान महावीर के दूसरे अंतेवासी अग्निभूति अणगार जिनका गौतम गोत्र था, सात हस्त प्रमाण अवगाहना थी भगवान् महावीर की सेवा में उपस्थित हुए ।
कालान्तर में वे दूसरे गौतम भगवान् महावीर को वंदन नमस्कार कर जहाँ तीसरे गौतम वायुभूति अनगार थे वहाँ आये ।
•५ अभिभूति का परिनिर्वाण - परिनिर्वाण के समय अवस्था :
थे अग्भूिई गहरे चोवत्तरिं वासाईं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिडे सव्वदुक्ख पहीणे || - सम० सम ७४ / सू १ टीका - तत्राभिभूतिरिति महावीरस्य द्वितीयो गणधर : - गणनायकः तस्येह चतुःसप्ततिवर्षाण्यायुः, अत्र चायं विभागः - षट्चत्वारिंशद्वर्षाणि गृहस्थपर्याय: द्वादश छद्मस्थपर्यायः, षोडश केवलिपर्याय इति ।
स्थविर अग्निभूति गणधर चौहत्तर वर्ष की आयु में सिद्ध बुद्ध, मुक्त, अंतकृत- परिनिर्वाण - सर्व दुःख से रहित हुए ।
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