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वर्धमान जीवन - कोश
२३१
अन्यतीर्थियों ने गौतम स्वामी का कथन सुनकर इस प्रकार कहा- 'हे आर्यो ! हम किस प्रकार त्रिविध-त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकांत बाल हैं ?' तब गौतम स्वामी ने उन अन्यतीर्थियों से कहा - 'हे आर्यों! चलते हुए तुम प्राणियों को आकांत करते हो, पीड़ित करते हो । जीवों को अकांत करते हुए यात्रत् पोड़ित करते हुए तुम त्रिविधविविध असंयत, अविरत, यावत् एकांत बाल हो ।'
इस प्रकार गौतम स्वामी ने उन अन्यतीर्थियों को निस्तर किया । इसके पश्चात् गौतम स्वामी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की सेवा में आकर उन् वंदना - नमस्कार करके न अतिदूर, न अति निकट यावत् पर्युपासना करने लगे । . ३ भगवान् महावीर द्वारा गौतम स्वामी की प्रशंसा :
गोमादी ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी - सुट् ठु णं तुमं गोयमा ! ते अण्णउत्थि एवं वयासी - साहु णं तुमं गोयमा ! ते अण्णउत्थिए एवं वयासी, अस्थि णं गोयमा । ममं बहवे अंतेवासी समणा णिग्गंथा छउमत्था, णं णोपभू एयं वागणं वागरेत्तए, जहा णं तुमं, तं सुछु णं तुमं गोयमा ! ते अण्णउत्थिए एवं वयासी, साहू णं तुमं गोयमा ! ते अण्णउत्थिए एवं वयासी ।
तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं कुत्ते समाणे हट्ट तुट्ठे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी
- भग० श १८ / उ ८ / सू १७२
से
हे गौतम! इस प्रकार सम्बोधित कर श्रमण भगवान् महावीर ने गौतम स्वामी से कहा - 'हे गौतम! तुमने उन अन्यतीर्थियों को ठीक कहा, हे गौतम! तुमने उन अन्यतीर्थियों को यथार्थ कहा । गौतम ! मेरे बहुत शिष्य श्रमण-निर्ग्रन्थ छद्मस्थ हैं । जो तुम्हारे समान उत्तर देने में समर्थ नहीं हैं। इसलिए हे गौतम! तुमने उन अन्यतीथियों को ठीक कहा । हे गौतम! तुमने उन अन्यतीर्थियों को बहुत ठीक कहा ।'
जब श्रमण भगवान् महावीर ने ऐसा कहा -तब हृष्ट-तुष्ट होकर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर को वंदना नमस्कार किया ।
.८ परिनिर्वाण के दिन गौतम गणधर को देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोधार्थ भेजा :
स्वामी तद्दिनयामिन्यां विदित्वा मोक्षमात्मनः । स एव केवलज्ञानप्रत्यूहोऽस्य महात्मा: । देवशर्मा द्वितो ग्रामे परस्मिन्नस्ति स त्वया । यथाऽऽदिशति मे स्वामीत्युदित्वा च प्रणम्यच । तदा च कार्तिकदर्शनिशायाः पश्चि क्षणे ।
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पंचह्नस्वाक्षरोच्चारमितकालेन
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दध्यावहो गौतमस्य मयि स्नेहो निरत्ययः ॥ २१८ || सच्छेद्य इति विज्ञाय निजगादेति गौतमम् ॥ २१६ ॥ बोधं प्राप्स्यति तद्धेतोस्तत्र त्वं गच्छ गौतम ! ||२२०|| जगाम गौतममुनिस्तथा चक्रे प्रभोर्वचः ॥ २२१|| स्व. तिक्षे वर्तमाने कृतषष्ठो जगद्गुरुः ||२२२||
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तेन तु । ध्यानेन तुर्येण तुर्यपुमर्था
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व्यभिचारिणा ॥ २३६ ॥
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