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वधमान जीवन-कोश तए णं भगवं गोयमे ते अण्णउत्थिए एवं वयासी-'णो खलु अज्जो! अम्हे रीयं रीयमाणा पाणे पेच्चेमो जाव उद्दवेमो, अम्हे णं अज्जो! रीयं रीयमाणा कायं च जोयं च रोयं च पडुच्च दिस्सा-दिस्सा पदिस्सा-पदिस्सा वयामो, तए णं अम्हे दिस्सा-दिस्सा वयमाणा पदिस्सा-पदिस्सा वयामो, तए णं अम्हे दिस्सा-दिस्सा वयमाणा पदिस्सा-पदिस्सा वयमाणा णो पाणे पेञ्चमो जाव णो उद्दवेमो, तए णं अम्हे पाणे अपेच्चेमाणा जाव अणोद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं जाव एगंतपंडिया यावि भवामो, तुब्भे णं अज्जो! अप्पणा चेव तिविहं तिविहेणं जाव एगंतबाला यावि भवह ।।
--भग० श १८/3 ८/सू १६३ से १६८ उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर यावत् पृथ्वीशिलापट्ट था। उस गुणशील उद्यान के समीप बहुत से अन्यतीथिक रहते थे। अन्यदा किसी समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे यावत् परिषद् वंदना कर चली गई। उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अंतेवासी इन्द्रभूति अनगार यावत् ऊर्ध्वजानु (दोनों घुटने ऊंचे करके) तप-संयम से आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे। उस समय वे अन्यतीथिक गौतम स्वामी के समीप आकर कहने लगे कि, 'हे आर्यों ! तुम त्रिविध-त्रिविध (तोन करण तीन योग से ) असंयत, अविरत यावत् एकांत बाल हो। ... अन्य तीथिकों का आक्षेप सुनकर गौतम स्वामी ने कहा-'हे आर्यों! किस कारण हम त्रिविध-त्रिविध असंयत यावत् एकांत बाल हैं ?' तब अन्यतीथिकों ने कहा-'हे आर्यो ! गमन करते हुए तुम जीवों को आकांत करते हो (दबाते हो), मारते हो, यावत् उपद्रव करते हो। इसलिए प्राणियों को आकात य. पत् उपद्रव करते हुए तुम त्रिविधत्रिविध असंयत यावत् एकांत बाल हो ।'
इस पर से गौतम स्वामी ने उन अन्यतीथियों से कहा-'हे आर्यों ! हम गमन करते हुए प्राणियों को आक्रांत नहीं करते, यावत् पीड़ा नहीं पहुँचाते। हम गमन करते हुए काययोग (संयमयोग) और सूक्ष्मतापूर्वक (चपलता आदि से रहित) देख देख कर चलते हैं। इस प्रकार चलते हुए हम प्राणियों को आक्रांत नहीं करते, यावत् पीड़ा नहीं पहुँचाते ।
इस प्रकार प्राणियों को आकांत नहीं करते हुए, यावत् पीड़ा नहीं करते हुए हम विविध विविध यावत् एकांत पंडित हैं। तुम स्वयं ही त्रिविध-त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकांत बाल हो ।'
.२ अन्यतीर्थियों के साथ सैद्धांतिक मतभेद :
तए णं अण्णउत्थिया भगवं गोयम एवं वयासी-केणं कारणेणं अज्जो! अम्हे तिविहं तिविहेणं जाव भवामो।' तए णं भगवं गोयमे ते अण्णउत्थिए एवं वयासी-'तुम्भे णं अजो! रीयं रीयमाणा पाणे पेच्चेह, जाव उद्दवेह, तए णं तुम्भे पाणे पेच्चेमाणा जाव उद्दवेमाणा तिविहं जाव एगंतवाला यावि भवह।' तए णं भगवं गोयमे ते अण्णउत्थिए एवं पडिभणइ, पडिभणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता णञ्चासणे जाव पन्जुवासइ।
-भग० श १८/उ ८/सू १६६ से १७१/पृ० ७८१
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