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वर्धमान जीवन-कोश
२२६ .२ महाशतक का भूल स्वीकार करना और प्रायश्चित करना :
तए णं से महासतए समणोवासए भगवओ गोयमस्म तह त्ति एयम विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जइ। -उपा० असू ५०
। तदनन्तर उस महाशतक श्रमणोपासक ने भगवान् गौतम की इस बात को तथेति ( ठीक है ) कहकर विनयपूर्वक स्वीकार किया। स्वीकार करके उस बात की आलोचना को यावत् यथायोग्य प्रायश्चित अंगीकार किया।
.३ गौतम का महाशतक श्रावक के घर से वापस आना :
___ तए णं से भगवं गोयमे महासतगस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मझंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उदागपिछत्ता सम भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। ५१॥
-उवा० अघ/सू ५१ महाशतक-आणंद आदि दस प्रमुख श्रावकों में एक श्रावक था।
भगवान् गौतम महाशतक श्रमणोपासक के समीप से निकले-निकलकर राजगृह नगरी के बीच में से होते हुए जहाँ पर श्रमण भगवान महावीर थे -वहाँ आये -आकर श्रमण भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार किया।
वंदन-नमस्कार करके संयम-तप के द्वारा आत्मा को भावित करते हए विचरने लगे।
.७ अन्यतीथियों से गौतम स्वामी का वाद-विवाद : .१ अन्यतीर्थियों द्वारा प्रश्न :
तेणं कालेणं तेणं समरणं रायगिहे जाव पुढविसिलापट्टओ, तस्स णं गुणसिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अण्णउत्थिया परिवसंति। तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समासढे जाव परिसा पडिगया। तणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेढे अंतेवासी इंदभुई णामं अणगारे जाव उड्ढजाणू जव विहरइ। तए णं ते अण्णउत्थिया जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता भगवं गोयम एवं वयासी–'तुभे णं अज्जो ! तिविहं तिविहेणं अस्संजय जाव एगंतबाला यावि भवह ।'
तए ण भगवं गोयमे अण्णउत्थिए एवं वयासो-'केणं कारणेणं अज्जो ! अम्हे तिविहं तिविहेणं अस्संजय जाव एगंतबाला यावि भवामो।' तए णं ते अण्णउत्थिया भगवं गोयमं एवं वयासी–'तुज्न्भे णं अनो! रोयं रीयमाणा पाणे पेच्येह, अमिहणह जाव उवद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं जाव एर्गतबाला यावि भवद ।'
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