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वर्धमान जीवन - कोश
इस प्रकार पूछने लगे कि वह सूर्य कौन-सा कहा गया है ।
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ककुमार श्रमण गौतम स्वामी से
'प्रकार से प्रश्न करते हुए केशीकुमार श्रमण से गौतम स्वामी इस प्रकार कहने लगे
क्षीण हो गया है संसार जिसका अर्थात् संसार के मूलभूत कर्मों का क्षय कर देनेवाला सर्वज्ञ, जिनेन्द्र भगवान् रूपी सूर्य उदय हुआ है । वह प्राणियों के लिए सम्पूर्ण लोक में प्रकाश करेगा ।'
(ड) क्षेमरूप, शिवरूप- बाधापीड़ा रहित स्थान के सम्बन्ध में : साहु गोयम ! पण्णा ते, छिण्णो मे संसओ इमो । सारी माणसे दुक्खे, बज्झमाणाण पाणिणं । अस्थि एवं धुवं ठाणं, लोगग्गम्मि दुरारुहं । ठणे य इइ के कुत्ते ? केसी गोयममब्बवी । विणं ति अबाहं ति, सिद्धि लोगग्गमेव य । तं ठाणं सासयं वास, लोगग्गम्मि दुरारुहं ।
अण्णोऽवि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! ||७|| खेमं सिव-मणाबाह, ठाणं किं मण्णसी मुणी ॥८०॥ जत्थ णत्थि जरामच्चू, बाहिणो वेयणा तहा ॥८१॥ केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥८२॥ खेमं सिवं अणाबाहं, जं चरंति महेसिणो ॥ ८३ ॥ जं संपत्ता ण सोयंति, भवोंतकरा मुणी ॥८४॥ उत्त० अ २३ / गा ७६ ४
हे गौतम! आपकी बुद्धि श्रेष्ठ है । आपने मेरा यह संशय दूर कर दिया है। मेरा और भी संशय है, इसलिए हे गौतम! उसके विषय में भी मुझे कहिये अर्थात् मेरा जो बारहवाँ संशय है-उसे भी दूर कीजिये । बने बारहवाँ प्रश्न - हे मुने! शारीरिक और मानसिक दुःखों से पीड़ित होते हुए अथवा आकुल-व्याकुल प्राणियों के लिए क्षेम रूप, शिवरून और बाधा - पीड़ा रहित स्थान आप कौन-सा मानते हैं ?
हुए
गौतम स्वामी कहते हैं कि - "लोक के अग्रभाग पर एक ध्रुव स्थान है । वेदना नहीं है किन्तु वह स्थान दुरारूह है अर्थात् उस स्थान तक पहुँचना बड़ा कठिन है ।"
उपरोक्त
केशीकुमार श्रमण गौतम स्वामी से इस प्रकार पूछने लगे कि, "वह स्थान कौन-सा कहा गया है ?" उपरोक्त प्रकार से प्रश्न करते हुए केशीकुमार श्रमण से गौतम स्वामी इस प्रकार कहने लगे
वह स्थान शाश्वत है, लोक के अग्रभाग पर कठिन है, उरकादि भवों की परम्परा का अन्त करनेवाले शोक नहीं करते अर्थात् वहाँ पहुँचने के बाद शोक, क्लेश, संसार में नहीं आना पड़ता
"हे मुने ! वह स्थान निर्वाण, अत्र्याबाध, सिद्धि, क्षेम, शिव और अनाबाध इत्यादि नामों से कहा जाता है और वह स्थान लोकाग्र पर स्थित है, उस स्थान को महर्षि लोग प्राप्त करते हैं। "
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साहु गोय! पण ते, छिण्णो मे संसओ इमो । एवं तु संसए छिष्णे, घोरपरक्कमे ।
केसी
जहाँ बुढ़ापा, मृत्यु, व्याधि तथा
. ३ गौतम स्वामी से केशी स्वामी ने चार महाव्रत से पंच महाव्रत ग्रहण किये ।
स्थित है । वह दुरूह है अर्थात् वहाँ पर पहुँचना अत्यन्त मुनि उस स्थान को प्राप्त करते हैं और वहाँ पर पहुँचने पर जन्म, जरा आदि दुःख कभी भी नहीं होते - फिर कभी
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णमो ते संसयातीत ! सव्वमुत्तमहोयही ॥८५॥ अभिवंदित्ता सिरसा, गोयमं तु महायसं ॥ ८६ ॥
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