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वर्धमान जीवन - कोश
२२१
असाविणी गावा, णं सा पारस्स गामिणी । जा णिरस्साविणी णावा, सा उ पारस्स गामिणी ॥ ७१ ॥ जावा य इइ का वृत्ता ? केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ७२ ॥ सरीरमाहु णावत्ति, जीवो वुच्चइ णाविओ । संसारो अण्णवो वृत्तो,
जं तरंति महेसिणो ||७३ || - उत्त० अ २३ /गा ६६ से ७३
हे गौतम! आपको बुद्धि श्रेष्ठ है । आपने मेरा यह संशय दूर कर दिया है । मेरा और भी संशय है, इसलिए हे गौतम! उसके विषय में भी मुझे कहिये अर्थात् मेरा जो दसवाँ संशय है-उसे भी दूर कीजिये । दसवाँ प्रश्न --- महाप्रवाह वाले समुद्र में एक नौका विपरीत दिशा में जा रही है । हे गौतम ! उस पर चढ़े हुए आप कैसे पार हो जाओगे ?
गौतम स्वामी कहते हैं कि - "जो नौका छिद्रोंवाली होती है-वह कभी पार ले जानेवाली नहीं होती, अपितु वह स्वयं समुद्र में डूब जाती है और उस में बैठे हुए मनुष्यों को भी डूबा देती है किन्तु जो नौका छिद्रों रहित है वह अवश्य ही पार ले जानेवाली होती है ।"
केशीकुमार श्रमण गौतम स्वामी से इस प्रकार पूछने लगे कि - 'वह नौका कौन-सी कही गयी है।' उपरोक्त प्रकार से प्रश्न करते हुए केशीकुमार श्रमण से गौतम स्वामी इस प्रकार कहने लगे
'तोर्थंकर देव ने इस शरीर को नौका कही है और जीव नाविक (नौका) को चलानेवाला कहा जाता है तथा संसार, समुद्र कहा गया है, जिसे महर्षि लोग तिरकर पार हो जाते हैं। '
(ठ) सच्चे सूर्य के सम्बन्ध में :
साहु गोयम ! पण्णा ते, छिण्णो मे संसओ इमो । अण्णोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ||७४ || अंधयारे तमे घोरे, चिट्ठति पणिणो बहू । को करिस्सइ उज्जोयं, सव्वलोयम्मि पाणिणं ॥ ७५ ॥ उगओ विमलो भाणू, सव्वलोय-पभंकरो । सो करिस्सइ उज्जोयं, सव्वलोयम्मि पाणिणं ॥ ७६ ॥ भाणू य इइ के कुत्ते, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ||७७|| उग्गओ खीणसंसारो, सव्वण्णू जिणभक्खरो । सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगम्मि पाणिणं ॥ ७८ ॥ उत्त० अ २३/गा ७४ से ७८
मेरा और भी संशय है,
हे गौतम! आपकी बुद्धि श्रेष्ठ है । आपने मेरा यह संशय दूर कर दिया है। इसलिए हे गौतम! उसके विषय में भी मुझे कहिये अर्थात् मेरा जो ग्यारहवाँ संशय है—उसे भी दूर कीजिये ।
में
ग्यारहवाँ प्रश्न --जहाँ आँखों की प्रवृत्ति रूक जाने से पुरुष अंधे के समान बन जाता है, ऐसे घोर अंधकार से प्राणी रहते हैं । उन प्राणियों के लिए सम्पूर्ण लोक में कौन उद्योत करेगा ।
बहुत
वह
गौतम स्वामी कहते हैं कि- 'सम्पूर्ण लोक में प्रकाश करनेवाला एक निर्मल सूर्य उदय हुआ है । प्राणियों के लिए सारे संसार में उद्योत करेगा ।'
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