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वर्धमान जीवन-कोश केसीकुमार समणे, गोयम दिस्समागयं । पडिरूवं पडिवत्ति, सम्मं संपडिवजई ॥१६॥ पलालं फासुगं तत्थ, पंचमं कुसतणाणि य। गोयमस्स णिसेज्जाए, खिप्पं संपणामए ॥१७॥ केसीकुमार-समणे, गोयमे य महायसे। उभओ णिसण्णा सोहंति, चंदसूरसमप्पभा ॥१८॥ समागया बहू तत्थ, पासंडा कोउगा मिया। गिहत्थाण अणेगाओ, साहस्सीओ समागया ॥१६॥ देव - दाणव - गंधव्वा, जक्ख-रक्खस-किण्णरा। अदिस्साणं च भूयाणं, आसी तत्थ समागमो ॥२०॥
--उत्त० अ २३/गा ११ से २० . (घ) अव्वो ! मोक्ख-कज्जे साहेयव्वे किं पुण कारणं पास-सामिणा चत्तारि महव्वया णि निद्दिट्टाणि ? कारणं णाए य पडिक्कमणं ?
अणस्स मुणिणो कयमण्णस्स कप्पइ। नाणाविहवत्थ-गहणं, सामाइय-संजमाईणिय। कोस वद्धमाणसामिणा पंच महव्वयाणि, . उभयकाल-पडिक्कमणमवस्सं, सियवत्थ-गहणं, एगस्स मुणिणो कयं आहाकम्माइ सव्वेसि न कप्पणिज्ज सेज्जायरपिंड-विवज्जं, सामाइयं-छेदोवत्था [व] णाईणि त्ति ?
___ इय एवं विहचित्तं (न्तं) सीसाणं जाणिऊण ते दो वि।
मिच्छत्त - नासणत्थं संगम - चिंताउरा जाया ॥ तओ जेठं कुलमवेक्खमाणे अणेग-सीस-गण-परिवारो वुच्चंतो विज्जाहर ईहिं संपटिठओ गोयमो तिंदुगुज्जाणे भगवओ केसिगणहरस्स वंदण-वडियाए। भणियं च परममुणि णा। -
“गोयमो पडिवण्ण [रूवण्णू ] सीस-संघ-समाउलो। जेठं कुलमवेक्खंतो तिंदुर्ग व मागओ। केसी कुमारसमणो गोयमं दिस्समागयं । पडिरूवं पडिवत्तिं खिप्पं सो पडिवज्जड ॥"
तक्षणं च सीसेहि रयाउ निसेज्जाओ कय-जहारिहविणयकम्मो गोयमो केसी यत्ति । "केसी कुमार-समणे गोयमे य महायसे । दुइओ निसण्णा सोहंति चंद-सूर-सम-प्पभा ॥"
तओ ताण भगवंताण समागमं सोऊल-विन्नाण-हेउं पूयाइ दंसणस्थमागया सव्ये पासंडिणो, गिहत्था, भवणवइ-वाणमंतर-जोइस वेमाणिया [f] य देवाणमणेगाउ कोडीउ त्ति ।
-धर्मोप० पृ० १४०-१४१ वे शिष्य इस प्रकार शंका करने लगे कि यह हमारा धर्म कैसा है और यह इनका धर्म कैसा है तथा यह हमारी आचार-धर्म की व्यवस्था अर्थात् बाह्यवेष धारणादि क्रिया कैसी है और उनकी आचार-धन की व्यवस्था कैसी है ?
- महामुनि पार्श्वनाथ भगवान् ने जो चतुर्याम अर्थात् चार महाव्रत वाला धर्म कहा है और वर्धमान स्वामी ने जो यह पाँच महाव्रत वाला धर्म कहा है तो इस भेद का क्या कारण है ? भगवान् वर्धमान स्वामी ने जो परिमाणोथेत श्वेत एवं अल्प मूल्यवाले वस्त्र रखने का धर्म कहा है। और भगवान् पार्श्वनाथ ने जो यह विशिष्ट एवं बहुमूल्य वस्त्र रखने रूपधर्म कहा है, तो मोक्ष प्राप्ति रूप एक कार्य के लिए प्रवृत्ति करनेवालों के बाह्याचार में इतना अन्तर होने का क्या कारण है ?
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