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वर्धमान जीवन-कोश
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इसके बाद वहाँ पर अपने-अपने शिष्यों की शंका को जानकर उसकी निवृत्ति के लिए उन केशीकुमार श्रमण और गौतम स्वामी दोनों महापुरुषों ने एक स्थान पर मिलने का विचार किया।
- केशीकुमार श्रमण तेवीसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ के सन्तानिये (शिष्यानुशिष्य) थे। इसलिए उनके कुल को ज्येष्ठ मानकर विनय धर्म के ज्ञाता गौतम स्वामी अपने शिष्य समुदाय सहित तिदुक उद्यान में जहाँ केशीकुमार श्रमण थे-वहाँ आये।
___ केशीकुमार श्रमण गौतम स्वामी को आते हुए देखकर बहुमान भक्ति के साथ उनके योग्य सत्कार-सम्मान करने लगे। केशीकुमार श्रमण ने वहाँ गौतम स्वामी के बैठने के लिए प्रासुक, पलाल अर्थात् शाली, ब्रीहि, कोद्रव राख-ये चार और पांचवां डाभ के तृण-ये पाँच प्रकार के पलाल दिये -
चन्द्र सूर्य के समान कान्तिवाले महायशस्वी केशीकुमार श्रमण और गौतम स्वामी, दोनों आसन पर बैठे हुए चंद्रमा और सूर्य के समान शोभित हो रहे थे। - उन दोनों मुनियों की चर्चा-वार्ता को सुनने के लिए अनेक हजारों गृहस्थ वहाँ तिंदुक वन में आये और बहुत से मृग के समान अज्ञानी पाखंडी लोग और कुतूहली लोग भी वहाँ आकर इकट्ठे हुए।
ज्योतिषी और वैमानिक देव, दानव (भवनपति, गन्धर्व) यक्ष, राक्षस, किन्नर आदि देव भी वहाँ आये और दिखाई न देनेवाले भूतों का भी वहाँ समागम था अर्थात् अदृश्य भून भी वहाँ आये थे।
(च) पुच्छ: मि ते महाभाग ! केसी गोयममब्बवी। तओ केसिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥२॥ पुच्छ भंते ! जहिच्छं ते. केसिं गोयम-मब्बवी। तओ केसी अणुण्णाए, गोयमं इणमब्बवी ॥२२॥
-उत्त० अ २३/गा २१, २२ केशीकुमार श्रमण ने गौतम स्वामी से कहा कि, 'हे महाभाग ! आपो वुछ पूछना चाहता हूँ ।' तब इस प्रकार बोलते हुए केशी कुमार श्रमण को गौतम स्वामी इस प्रकार कहने लगे।
गौतम स्वामी ने केशीकेमार श्रमण को कहा कि, 'हे भगवन् ! आपकी जैसी इच्छा हो वैसा प्रश्न करो।' इसके बाद गौतम स्वामी की अनुमति प्राप्त होने पर केशी मार श्रमण गौतम स्वामी से इस प्रकार पूछने लगे।
(छ)
कालाणुरूव - किरियं सुयाणुसारेण कुरु जहा-जोग।। जह केसिगणहरेणं गोयम - गणहारिणो विहिया ॥५२॥
__-धर्मोप० गा ५२/पृ० १४० टीका - कालानुरूप - क्रियां पंचमहाव्रतादिलक्षणामागमानुसारेण यथा -- गौतम-समीपे
पार्श्वनाथीयकेसि (शि) गणधरेण कृतेति ।
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