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वधमान जीवन - कोश
विरुव्वियं तियसेहिं दिव्वमच्चंत-मणाभिरामं कंचर्ण-सयवत्तं । ठिओ तत्थ । समादत्ता धम्म कहा । संपत्ता देव-दाणव नरिंदाइणो त्ति । अवि य ।
तियसासुर-नय-चलणो धम्मं साहेइ गणहरो केसी । दट्ठब्व-दिट्ठ-सारो मोक्ख फलं सव्व-सत्ताणं ॥ तीय चिय नयरीए उज्जाणे कोट्ठगम्मि वीरस्स। सीसो गोयमगोत्तो समोसढो इंदभूइति ॥ कंचण-पउम- निसण्णो धम्मं साहेइ सो वि सत्ताण । पुव्ववराविरुद्धं पमाण - नय हेउ-सय-सलियं ॥ नाणा विह-व-धरा सिसा केसिरस सियवड - समेया गोयम - गणहर - सीसा मिलिया एत्थ चिंतंति ॥ - धर्मोप० पृष्ट १४०
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जिन ( राग-द्वेष के विजेता ), अरहा ( नरेन्द्र-देवों से वंदित), लोक में पूजित, तत्त्वज्ञान से युक्त आत्मावाले, सर्वज्ञ, धर्मतीर्थंकर, समस्त कर्मों को जीतनेवाले पार्श्वनाथ नाम के भगवान् ( तेइसवें तीर्थंकर) थे ।
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लोक में दीपक के समान उन पार्श्वनाथ भगवान् के ज्ञान और चारित्र के पारगामी, महायशस्वी केशीकुमार श्रमण, शिष्य थे । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान से युक्त, तत्त्वों को जाननेवाले, शिष्यों के परिवार सहित ग्रामानुग्राम विचरते हुए वे केशीकुमार श्रमण श्रावस्ती नामक नगरी में पधारे । उस श्रावस्ती नगरी के समीप तिन्दुक नाम का एक उद्यान था । स्थान में वे केशीकुमार श्रमण ठहरे ।
वहाँ प्रासुक (जीव रहित ) संस्तारक युक्त
अस्तु — उसी समय धर्मतीर्थ की स्थापना करनेवाले, राग-द्वेष के विजेता भगवान् वर्धमान स्वामी समस्त संसार में सर्वज्ञ सर्वदर्शी तीर्थंकर रूप से प्रसिद्ध थे । लोक में दीपक के समान उन भगवान् वर्धमान स्वामी के ज्ञान और चारित्र के पारगामी, महायशस्त्री भगवान् गौतम (अपर नाम – इन्द्रभूति - प्रथम गणधर थे ) शिष्य थे ।
बारह अंगों के ज्ञाता, तत्त्वज्ञानी, शिष्यों के परिवार सहित, ग्रामानुग्राम विचरते हुए, गौतम स्वामी श्रावस्ती नगरी में भी पधारे। उस श्रावस्ती नगरी के समीप कोष्ठक नाम का एक उद्यान था ।
वहाँ प्रासुक (जीव
रहित ) संस्तारक युक्त स्थान में ठहरे गये ।
मन-वचन-काय युक्त, ज्ञान- दर्शन - चारित्र की समाधिवंत, महायशस्वी केशीकुमार श्रमण और गौतम स्वामी दोनों ही वहाँ सुख-शांतिपूर्वक विचरते थे ।
केशीकुमार श्रमण ओर गौतम स्वामी दोनों के संयंती, तपस्वी, ज्ञान दर्शन- चारित्र आदि गुण सम्पन्न, छः काय जीवों के रक्षक, शिष्य - समुदाय के मन में वहाँ शंका उत्पन्न हुई ।
नोट- गोचरी के लिए निकले हुए उन दोनों के शिष्य समुदाय को एक ही धर्म के उपासक होने पर भी एक दूसरे के वेषादि में अन्तर दिखाई देने के कारण एक-दूसरे के प्रति शंका उत्पन्न हुई ।
(ग) केरिसो वा इमो धम्मो ? इमो धम्मो व केरिसो ? आयार - धम्मप्पणिही, इमा वा सा व केरिसी १११ ॥
चाज्जामो य जो धम्मो, जो इमो पंच- सिक्खिओ । देसिओ वद्धमाणेणं, पासेण य महामुनी ||१२|| अचेलगो य जो धम्मो, जो इमो संतरुत्तरो । एगज्जपवण्णा, विसेसे किंणु कारणं ||१३|| अह ते तत्थ सीसाणं, विष्णाय पवितक्कियं । समागमे कयमई, उभओ केसिगोयमा ॥ १४ ॥ गोयमो पडवणू, सीससंघसमाउले | जेटलं कुलमवेक्खंतो, सिंदुयं वणमागओ ॥ १५॥
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