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वर्धमान जीवन-कोश
श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निन्थों के लिए पांच स्थान सदा वणित किये हैं, कीर्तित किये हैं, अभ्यनुज्ञात किये हैं
१- दंडायतिक-पैरों को पमारकर बैठने वाला। २- लगंड शायो- सिर और एडी भूमि से संलग्न रहे और शेष सारा शरीर ऊपर उठ जाये । अथवा पृष्ठ
भूमि भाग से संलग्न रहे । और सारा शरीर ऊपर उठ जाए-इस मुद्रामें सोने वाला। ३-आतापक-शीतताप सहने वाला। ४-अप्रावृतक-वस्त्र त्याग करने वाला ५-अकण्डूयक-खुजली नहीं करने वाला।
.१६ भगवान महावीर के शासन और अन्य तीर्थकरों के शासन में अन्तर
पंचहिं ठाणेहिं पुरिम-पच्छिमगाणं जिणाणं दुग्गमं भवंति, तंजहा–दुआइक्खं, दुविभज्ज', दुपस्सं, दुतितिक्खं. दुरणुचरं ।
पंचहिं ठाणेहिं मज्झिमगाणं जिणाणं सुग्गम भवंति, तंजहा-सुआइक्खं, सुविभज्ज, सुपरसं, सुतितिक्खं, सुरणुचरं ।।
-ठाण० स्था ५/उ १/सू ३२, ३३ प्रथम तथा अंतिम तीर्थकर के शासन में पाँच स्थान दुर्लभ होते हैं :१- धर्म तत्त्व का आख्यान करना । २-तत्त्व का अपेक्षा दृष्टि से विचार करना । ३-तत्त्व का युक्ति पूर्वक निर्दशन करना । ४ उत्पन्न परीषहों को सहन करना ५- धर्म का आचरण करना मध्यवर्ती तीर्थ करों के शासन में पाँच स्थान सुगम होते हैं। १-धर्म तत्त्व का का आरूयान करना २- तत्त्व का अपेक्षा दृष्टि से विभाग करना ३-तत्त्व का युक्ति पूर्वक निदर्शन करना ४- उत्पन्न परीषहों को सहन करना ५- धर्म का आचरण करना ४०/६६ वर्धमान (महावीर) और शासन संपदा ४०/४६ वर्धमान के ग्यारह गणधरों का विवेचन ४०/१ औधिक गणधर विवेचन
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