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वर्धमान जीवन-कोश
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३-अन्त्याहार ४-प्रान्त्याहार
५-रूक्षाहार .८ भगवान महावीर से उपदिष्ट और अनुमत पाँच स्थान
पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तिताई णिच्च बुइयाई णिच्च पसत्थाई णिच्च अब्भणुण्णाताई भवंति, तंजहा-अरसजीवी, विरसजीजी, अंतजीवी, पंतजीवी, लूहजीवी।
-ठाण० स्था ५/उ १/सू ४१/पृ० ६८६ श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निग्रन्थों के लिए पाँच स्थान सदा वर्णित किये हैं, कीर्तित किये हैं, व्यक्त किये है, प्रशंसित किये हैं, अभ्यनुज्ञात किये हैं।
१-अरसजीवी-जीवन भर अरस आहार करने वाला। २-विरसजीवी-जीवन भर विरस आहार करने वाला। ३-अन्त्यजीवी ४-प्रान्त्यजीवी
५-रूक्षजीवी .६ भगवान महावीर से उपदिष्ट और अनुमत स्थान
पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गथाणं णिच्च वण्णिताई णिच्च कित्तिताई णिच्च बुइयाई णिचं पसत्थाई णिच्च अब्भगुण्णाताई भवंति तंजहा-ठाणातिए, उक्कुडुआसणिए, पडिमट्ठाई, वीरासणिए, णेसज्जिए।
-ठाण० स्था ५/उ १/सू ४२/पृ० ६८६ भगवान् महावीर ने श्रमण निग्रंथों के लिए पाँच स्थान सदा वणित किये हैं, कीर्तित किये है, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं, अभ्यनुज्ञात किये है
१-स्थानायतिक ~ कायोत्सर्ग मुद्रा से युक्त होकर दोनों बाहुओं से घुटनों की ओर झुकाकर - खड़ा रहने
वाला। २-उत्कुटुकासनिक-उकडू बैठने वाला ३-प्रतिमास्थायी-प्रतिमाकाल में कायोत्सर्ग की मुद्रा में अवस्थित ४- वीरासनिक-वीरासन की मुद्रा में अवस्थित
५-नैषधिक-विशेष प्रकार से बैठने वाला .१० भगवान महावीर से उपदिष्ट और अनुमत पाँच स्थान
पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गथाणं णिच्च वण्णिताई णिच्च कित्तिताई णिञ्च बुइयाई णिच्च पसत्थाई णिच्चं अब्भणुण्णाताई भवंति, तंजहा-दंडायतिए, लगंडसाई, आतावए, अवाउडए, अकंडूयए।
-ठाण० स्था ५/उ १/सू ४३/पृ० ६८६
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