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वर्धमान जीवन-कोश ( भगवान् प्रकारान्तर से ) धर्म की प्ररूपणा करने लगे-यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ( जड़ चेतन की ग्रंथि को छुड़ाने वाला उपदेश-आत्मानुशासन ) सत्य है। अनुत्तर ( सर्वोत्तम अलौकिक ) है। केवल ( अद्वितीय या केवलि प्रणीत तथा अनंत अर्थ की विषयता के कारण अनंत ) है। प्रतिपूर्ण ( अल्प ग्रंथतादि प्रवचन गुणों से सर्वांग संपन्न ) है। संशुद्ध ( कषादि से शुद्ध स्वर्ण के समान गुण पूर्णता के कारण निर्दोष ) है। नैयायिक ( प्रमाण से बाधित नहीं होने वाला ) है। शल्य कर्तन ( मर्यादि शल्य का निवारक ) है ।
सिद्धि मार्ग ( कृतार्थता का उपाय ) है। मुक्ति मार्ग ( कर्म रहित अवस्था का हेतु ) है। निर्माण मार्ग (पुनः नहीं लौटने वाले गमन का हेतु ) है । निर्वाण मार्ग ( सकल संताप रहितता का पंथ ) है। अवितथ ( सद्भूतार्थ वास्तविक ) और अविसंधि अर्थात् महाविदेह क्षेत्र की अपेक्षा से इसका न कभी विच्छेद होता है और न कभी विच्छेद होगा और सर्व दुःख प्रहीण मार्ग ( सकल दुःखों को निःशेष करने का पंथ अथवा जहाँ सभी दुःख प्रहीण है ऐसे मोक्ष का यह मार्ग है।
इस ( प्रवचन में ) स्थित जीव सिद्ध ( सिद्धि गमन के योग्य अथवा इस लोक में अणिमादि महासिद्धियों को प्राप्त ) होते हैं। बुद्ध ( केवल ज्ञानी-पूर्ण ज्ञानी ) होते हैं। मुक्त ( भवोपनाही कर्मांश से रहित ) होते हैं। परिनिवृत ( कर्म कृत सकल संताप से रहित आनंद घन ) होते हैं और सभी दुःखों का अंत करते हैं।
अनन्तविज्ञानमतीतदोषमबाध्यसिद्धान्तममर्त्य पूज्यम् । श्रीवर्धमानं जिनमाप्तमुख्यं स्वम्भुवं स्तोतुमहं यतिष्ये ॥१॥
-अन्ययो० अनन्त ज्ञान के धारक, दोषों से रहित, अबाध्य सिद्धांत से युक्त, देवों द्वारा पूजनीय, यथार्थ वक्ताओं में प्रधान और स्वयम्भू-ऐसे श्री वर्धमान जिनेन्द्र को स्तुति करूगा।
वाग्वैभवं ते निखिलं विवेक्त माशास्महे चेद् महनीयमुख्यं । लंघेम जंघालतया समुद्र वहेम चंद्रद्युतिपानतृष्णाम ॥३१॥
हे पूज्य शिरोमणि ! आपके संपूर्ण गुणों की विवेचना करना वेग से समुद्र को लांघने अथवा चन्द्रमा की चांदनी का पान करने को तृष्णा के समान है।
इदं तत्त्वातत्त्वव्यतिकरकरालेऽन्धतमसे। जगन्मायाकारैरिव हतपरैर्दा विनिहितम॥ तदुद्धर्त शक्तो नियतमविसंवादिवचनस्त्वमेवातस्त्रातस्त्वयि कृतसपर्याः कृताधियः ॥३२॥
__ -अन्ययो० इन्द्रजालियों की तरह अधम अन्य दर्शनवालों में इस जगत् को तत्व और अतत्त्व के अज्ञान में भयानक गाड अंधकार में डाल रखा है। अतः आप ही इस जगत् का उद्धार कर सकते हैं क्योंकि आपके वचन विसंवाद से रहित हैं। अतः हे जगत् के रक्षक ! बुद्धिमान लोग आपकी सेवा करते हैं ।
१२ तेणं कालेणं तेण समएणं साहंजणी नामं नयरी होत्था। x x x तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए। परिसाराया य निग्गए। धम्मो कहिओ। परिसा गया।
-विवा० श्रु १/अ ४ सू २, ११
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