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बर्धमान जीवन - कोश
धर्मपरायण होकर वापस वे कुसंग से भ्रष्ट होते हैं और उकरड़े में कमल पैदा होने की तरह कुदेश और कुकुल में उत्पन्न हुए कोई-कोई प्राणी धर्मी होंगे ।
तथापि वे हीन-जाति के होने से अनुपादेय होंगे। इस प्रकार कमल के स्वप्न का फल जानना चाहिए ।
७ - जैसे फल प्राप्ति के लिए बीज उषर भूमि में बोये जाते हैं उसी प्रकार कुपात्र में सुपात्र बुद्धि से अकल्य वस्तु बोयेंगे। अथवा जैसे कोई निराशय खेहुत घूणाक्षर न्याय से उत्तम क्षेत्र में अबीज के अन्तर्गत बीज बोते हैं उसी प्रकार कोई श्रावक - अकल्प्य के अंतर्गत कल्प्य रूप पात्र दान करेंगे -यह बीज स्वप्न का फल है ।
८- क्षमादि गुण रूप कमलों से अंकित और सुचरित्र रूप जल से पूरित ऐसे एकांत में रखे हुए कुंभ की तरह महर्षिगण कोई एक स्थान में और वे भी बहुत थोड़े दिखाई देंगे ।
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और मलिन कलश की तरह शिथिलाचार और चारित्र वाले लिंगी - जहाँ वहाँ बहुत देखने में आयेंगे। वे मत्सर भाव से महर्षियों के साथ कलह करेंगे और वे दोनों लोक में सरिखे मिने जायेंगे गीतार्थ और लिंगी नगरलोव ला होने से जैसे देंगे उसके ऊपर एक कथा है-वह इस प्रकार है
राजा भी बेला हुआ बेसे व्यवहार पक्ष में सरिखे दिखाई
'पृथिवीपुरी में पूर्ण नाम का राजा था। उसके सुबुद्धि नामक बुद्धि संपत्ति वाला मंत्री था । सुखमें काल निर्गमन करते हुए सुबुद्धि मंत्री ने देवलोक नामक निमित्तज्ञ को भविष्यत् काल संबंधी प्रश्न पूछा ।
तत्पश्चात् उस निमितज्ञ ने कहा- एक मास के बाद में मेघवृष्टि होगी। उसके जल का जो पान करेगा उन सबों के ग्रहिल (धेला) हो जायेगा ।
तत्पश्चात् किवनेक काल के बाद में दूसरी बार मेप वृष्टि होगी। उसके जल का पान करने से लोक वापस ठीक हो जायेंगे ।
मंत्री ने यह सब वृत्तान्त राजा को कहा
तत्पश्चात् राजा ने पडह फिराकर लोगों को जल संग्रह करने की आज्ञा की । सा किया।
तत्पश्चात् निमितज्ञ के कथित दिन को मेघ वृष्टि हुई।
तुरंत संग्रहित जल को लोगों ने नहीं पिया परन्तु कितनेक काल-निर्गमन होने से लोगों का संग्रह किया हुआ पानी रिक्त हो गया ।
फलस्वरूप उनके सिवाय अन्य सामंत आदि लोगों
मात्र राजा और मंत्री का वहाँ जब रिक्त नहीं हुआ । ने नये वर्पे हुए जल का पान किया ।
हंसने लगे। जैसे-तैसे बोलने लगे। गाने लगे और
उसका पान करते ही वे लोग ना होकर नाचने लगे। स्वेच्छा से अनेक प्रकार की चेष्टा करने लगे । मात्र राजा और मंत्री दो ही ठीक रहे । तत्पश्चात् अन्य सामंत आदि राजा और मंत्री को स्वयं के ही विपरीत प्रवृत्तिवाला देखकर निश्चय किया कि जरूर यह राजा और मंत्री दोनों ऐसा हो गया ऐसा जाना जाता है। क्योंकि वे अपने से विलक्षण आचार वाले हैं। इस कारण उनको उनके स्थान से दूर कर अन्य राजा और मंत्री को अपने लोगों के लिए स्थापित करना
चाहिए।
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फलस्वरूप सर्व लोगों ने
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